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Monday, January 17, 2011

दुआ की ताक़त The spiritual power

सारी ताक़त का मालिक एक पाक परवरदिगार है जिसे हरेक इलाक़े की हरेक भाषा में बहुत से नामों से जाना जाता है। उसका हरेक नाम पाक है, सुंदर है और शांतिदायक है। जिसने भी जब कभी उससे जो कुछ मांगा है। हमेशा उसने वही चीज़ या उससे बेहतर पाई है। उससे मांगने वाला आज तक कभी नामुराद नहीं हुआ है लेकिन अपने तन-मन और अमल की पवि़त्रता शर्त है। शर्त उस चीज़ को कहा जाता है कि अगर वह चीज़ न पाई तो वह काम ही अपने अंजाम को न पहुंचे जो कि उस पर निर्भर है।
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भारत एक अध्यात्म प्रधान देश है। यहां लाखों पीर-फ़क़ीर, साधु-संत और तांत्रिक हुए हैं और आज भी इतने ही हैं। इनमें से कुछ लोग अपने नियम-क़ायदे के प्रति समर्पित हैं और अपने नज़रिये के ऐतबार से समाज के लिए कुछ न कुछ सेवाएं दे रहे हैं। किसी की सेवा आला दर्जे की है और किसी की कमतर दर्जे की है। जो क़ानून के मुजरिम हैं वे इस बहस से बाहर हैं।
ये लोग चाहे ज़िंदा हों या फिर मृत। इनके मठ और दरगाहों पर हर साल करोड़ों लोगों की भीड़ पहुंचती है, अपने मन में एक आशा लेकर कि अगर बाबा का आशीर्वाद हमें मिल गया तो हमारे सारे दलिद्दर दूर हो जाएंगे।
क़िस्सा मुख्तसर यह है कि वे भी अपनी ताक़त से किसी को कुछ देने की ताक़त रखते बल्कि वे भी किसी और से ही मांगते हैं। कोई इससे मांगता है और कोई उससे लेकिन मांगता ज़रूर है। जिससे वे मांगते हैं उनमें किसी की ताक़त कम है और किसी की ज़्यादा लेकिन एक हस्ती वह है जो इन सबसे बढ़कर ताक़त वाला है। वह हस्ती वह है जिसने इन सबको पैदा किया, जिसने हम सब को पैदा किया, जिसने हर चीज़ को पैदा किया। वह सदा सबकी सहायता के लिए तैयार है। आप अपनी भाषा में ही उसे किसी भी सुंदर से नाम से अपनी मदद के लिए पुकार सकते हैं। आपकी सदा सुनी जाएगी बशर्ते कि आप अपनी दुआ को खुद ही भंग न कर डालें।
इस ब्लाग में मैं आपको मुख्यतः उस मालिक के अरबी नामों और कुरआन की आयतों की दुआ के बारे में जानकारी दूंगा कि इन नूरानी दुआओं की ताक़त से आप कैसे फ़ायदा उठा सकते हैं ?
आम समस्याएं जिनसे आज लोग परेशान हैं, उनमें प्यार मुख्य है। कोई किसी से प्यार करता है लेकिन जिससे वह प्यार करता है वह उसे प्यार नहीं करता। कहीं ऐसा है कि किसी का पति किसी ग़ैर-औरत के फंदे में फंसकर अपनी पत्नी के प्यार को सम्मान नहीं दे रहा है। इसी तरह और भी कई तरह की समस्याएं लोगों की ज़िंदगियों में हैं।
इसका हल काउंसिलिंग से भी हो सकता है लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को पूरा सहयोग देना पड़ता है लेकिन जहां एक पक्ष तो तैयार हो लेकिन दूसरा पक्ष काउंसिलिंग के लिए तैयार न हो वहां यह मनोवैज्ञानिक तरीक़ा काम नहीं आता। ऐसे में फ़क़त दुआ ही काम आती है। काम बहुत से हैं और मालिक के नाम भी बहुत से हैं। हरेक नाम की तासीर अलग है। अरबी के नामों में ‘अल्लाह‘ को सबसे बड़ा नाम माना गया है। इसके ज़रिये से आप बहुत से काम कर सकते हैं।
इस ब्लाग के ज़रिये कोशिश की जाएगी कि आपको आसान और तेज़ असर दुआओं की जानकारी दी जाए ताकि आपके लिए उन्हें करना आसान हो।
तब तक आप यह दुरूद शरीफ़ याद कर लीजिए क्योंकि आप कोई भी अमल करेंगे उसकी कुबूलियत के लिए आपको दुआ से पहले और दुआ के बाद दुरूद शरीफ़ ज़रूर पढ़ना होगा।
‘अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिवं-व-अला-आलिहि व-बारिक वसल्लिम‘
यानि ऐ अल्लाह ! आप अपनी ओर से सलात, सलामती और बरकत उतारिए मुहम्मद साहब पर।
यह दुरूद निहायत आसान है और छोटा होने की वजह से इसे याद करना भी आसान है।
आने वाले वक्त में आपको बताया जाएगा कि कैसे आप अपने जायज़ हक़ को, पाक प्यार को पा सकते हैं ?
अगर कोई ताक़तवर दुश्मन अपनी दौलत के नशे में चूर होकर सता रहा है और आप कहीं से कोई क़ानूनी या सामाजिक मदद की उम्मीद भी नहीं रखते तो आप कैसे उसे अपनी दुआ की ताक़त से बर्बाद कर सकते हैं ?
कैसे एक ज़ालिम दौलतमंद दुश्मन को दर-दर का भिखारी बना सकते हैं ?
सुख-शांति, रोज़गार, औलाद, बरकत और हिफ़ाज़त आप जो भी चाहते हैं, हर चीज़ को आप पा सकते हैं अपने यक़ीन की ताक़त से। आपका विश्वास ही आपकी ताक़त है। आपकी दुआ की बुनियाद में भी आपका ही विश्वास काम करता है।
आदमी मात्र शरीर ही नहीं है बल्कि उसमें एक आत्मा भी है। आप भौतिक जगत में जितनी भी चीज़े घटित होते हुए देखते हैं वे सब उन नियमों के तहत ज़ाहिर होती हैं जो कि आंख से नज़र नहीं आते। उन्हें देखने के लिए अक्ल की आंख की ज़रूरत पड़ती है। दुआ भी दुनिया का दस्तूर है लेकिन यह एक ऐसा नियम है जिसे जानने के लिए अक्ल के साथ-साथ दिल और रूह की भी ज़रूरत पड़ती है। इनमें असंतुलन हो तो आदमी या तो अंधविश्वासी बन कर भटक जाता है या फिर नास्तिक बनकर। दोनों ही तरह के भटकाव घातक हैं।
विश्वास में मुक्ति है और अंधविश्वास में तबाही।
आपको सजग रहना होगा अपने विश्वास के प्रति अन्यथा विश्वास एक पल में अंधविश्वास में बदल जाता है।
मालिक आपका भला करे।
आमीन !
http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-sense-of-worship-anwer-jamal.html

2 comments:

hamarivani said...

bilkul sach

कुमार राधारमण said...

मेरा अपना अनुभव भी ऐसा ही है। बहुधा,तात्कालिक ज़रूरतों के लिए ही दुआएं मांगी जाती हैं जो ग़लत है।