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Friday, July 3, 2015

Allahpathy क़ुरआन से इलाज करने के बदले माल लेने के बारे में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म और उनके सहाबा रजि़. का तरीक़ा



इमाम इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाहि अलैह लिखते हैं-
इमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैह और इमाम मुस्लिम रहमतुल्लाहि अलैह ने सहीहैन में हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत की है। उन्होंने बयान कियाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा की एक जमात एक सफ़र में निकल पड़ी। सफ़र करते करते अरब के एक क़बीले में उतरे और उनसे मेज़बानी क़ुबूल करने की दरख़्वास्त की। उन्होंने मेज़बानी क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया। इतने में उनके सरदार को डंक लगा। उन्होंने हर मुमकिन तदबीर कर डाली मगर कोई तदबीर कारगर साबित न हुई। उस क़बीले के बाज़ लोगों ने कहा कि यह क़ाफि़ला जो तुम्हारे यहां आया है उनके पास चलो। शायद उनमें से किसी के पास कोई तदबीर हो।
चुनांचे वे सहाबा ए रसूल स. के पास आए और उनसे कहा-‘ऐ क़ाफि़ले के लोगो! हमारे सरदार को डंक लग गया और हर मुमकिन तदबीर हमने कर डाली मगर कुछ फ़ायदा न हुआ। क्या तुम में से किसी के पास इसका इलाज है?
उनमें से बाज़ ने कहा कि हाँ, अल्लाह की क़सम मैं झाड़ फूंक करता हूँ, मगर ज़रा सोचो कि हमने तुमसे मेहमानदारी करने की दरख़्वास्त की तो तुम लोगों ने हमारी इस दरख़्वास्त को ठुकरा दिया और हमारी मेज़बानी न की। मैं दम उस पर उसी वक़्त कर सकता हूँ, जब तुम उस पर कुछ उजरत मुक़र्रर करोगे।
चुनाँचे भेड़ों की एक तादाद पर मामला तय हो गया। उन्होंने उस पर ‘अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ पढ़ते हुए दम करना शुरू किया। उसका असर यह हुआ कि वह ऐसा चंगा हो गया गोया कि उसे किसी बन्धन से रिहाई मिली हो और वह चलने फिरने लगा। उसे कोई तकलीफ़ न थी। फिर उसने कहा कि इन लोगों को उनकी तयशुदा पूरी पूरी उजरत दे दो। चुनाँचे उन्होंने उजरत दे दी।
उसमें बाज़ सहाबा ने कहा कि आपस में इसे बाँट लो। इस पर दम करने वाले शख़्स ने कहा कि जब तक हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास न पहुँच जाएं, उस वक़्त तक कुछ न करो और हम आपके हुक्म के मालूम हो जाने तक उससे तवक़्क़ुफ़ करेंगे। चुनाँचे सब लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और उन्होंने पूरा वाक़या बयान किया।
यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुमने ठीक ही किया। अब इसे आपस में बाँट लो और इसमें मेरा भी एक हिस्सा लगाना।’
-तिब्बे नबवी पेज 218 व 219 उर्दू तर्जुमाः हकीम अज़ीज़ुर्रहमान आज़मी
उर्दू से हिन्दी अनुवादः डा. अनवर जमाल यूसुफ़ ज़ई

Wednesday, March 26, 2014

सुब्हान-अल्लाह, ज़िन्दगी बनाए बेहतर Subhanallah

आयुर्वेदिक और यूनानी प्रोडक्ट्स के होलसेलर सैयद सलीम अहमद साहब हमारे एक अच्छे दोस्त हैं। उनके इसरार पर उनके घर जाना हुआ तो उनके घर के चार बच्चों पर इज्तेमाई (सामूहिक) हाज़िरात की। कभी कभी हम हरेक पर अलग अलग हाज़िरात करने के बजाय कई पर एक साथ भी कर लेेते हैं।
अगले दिन उनकी बेटी ने अपनी टीचर को बताया कि कैसे उसके साथ एक जिन्न (नज़र न आने वाला चेतन जीवधारी) लग गया था, जब वह उनके साथ मन्दिर के गेट तक गई थी!
सलीम भाई की बेटी ने हमारी तारीफ़ में दो चार बातें मज़ीद ऐसी कह दीं कि उनकी टीचर ने फ़ोन करके हमसे मुलाक़ात का टाईम मांगा। बालीं-‘मैं किस वक्त और किसके साथ आऊँ?
हमने कहा -‘आप अपनी सहूलत के वक्त अपनी मां या अपने दादा दादी वग़ैरह किसी के साथ आ सकती हैं।’
उन्होंने कहा -’अपने दादा से तो मैं बोलती तक नहीं। मैं अपनी मम्मी के साथ आ जाऊँगी।’
दादा से न बोलने की बात उनके जीवन में नकारात्मकता का पता दे रही थी। नकारात्मकता इंसान को कमज़ोर बनाती है और फिर वह कई तरह के हमलों का आसान शिकार बनकर रह जाता है।
उससे अगले दिन 21 मार्च 2014 को वह अपनी मां और सलीम भाई की बेटी को साथ लेकर हमारे ग़रीबख़ाने पर तशरीफ़ ले आईं।
‘मेरा नाम भावना है।’-उन्होंने बनियों के एक गोत्र के साथ अपना पूरा नाम बताया।
‘जी, मुझे मालूम है।’-हमने जवाब दिया।
भावना लगभग साढ़े पांच फ़ुट लम्बी बहुत साफ़ रंग की मालिका थीं। उन्होंने लेडीज़ स्टायल की पैन्ट शर्ट पहन रखी थी। उनके बाल भी स्टायल में कटे हुए थे जो उनके कंधों पर पड़े थे। उनकी मां का लिबास परम्परागत था लेकिन बाल उनके भी कटे हुए थे। सलीम भाई की बेटी दुपट्टे से सिर ढके बैठी थी।
‘आप बनिये के बजाय पंजाबी लगती हैैैं।’-हमने हंसते हुए भावना और उनकी मां से कहा।
‘हां, लोग हमें देखकर पंजाबी ही समझते हैं। हमने अपने बच्चों को ऐसे ही पाला है।’-भावना की मम्मी ने जवाब दिया।
‘क्या आप पंजाबियों के मुहल्ले में रहते हैं?’
‘नहीं, हम पंजाबियों के मुहल्ले में नहीं रहते।’
हमने मक़सद की अहम बात करने से पहले उनसे हल्की फुल्की बात की ताकि वे रिलैक्स हो जाएं और हमें भी अपनी ही तरह का एक आम आदमी समझें। इससे आदमी अपनी बात खुलकर कह पाता है और किसी की समस्या को समझने के लिए उसके मन की अंदरूनी पर्तों की जानकारी बहुत ज़रूरी है।
भावना अपनी समस्या का कारण जानने की जल्दी में थी। उसने पूछा-‘अंकल, यह बताईये कि कौन मेरे पीछे पड़ा है?’
‘मैं तो आपके पीछे बिल्कुल नहीं पड़ा हूं।’-मैं उसकी बात को हल्के से मज़ाक़ में बदल दिया। वे तीनों हंस पड़े।
तब तक चाय नाश्ता भी आ गया। हम यही चाहते थे। भावना ने चाय के दौरान बातचीत में बताया कि उसके पापा की मौत हो चुकी है। वही अकेली घर चला रही है। उसके एक बहन है जिसकी शादी हो चुकी है और एक भाई है जो कि जॉब की तलाश कर रहा है। वह एक इंटरनेशनल इंग्लिश मीडियम स्कूल में टीचर हैं लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए उनका मनपसंद सब्जेक्ट नहीं दिया गया है। उनके पास पहले के मुक़ाबले ट्यूशन भी बहुत कम हो गए हैं। उम्र लगभग 27 साल हो चुकी थी लेकिन उनकी शादी भी नहीं हो पाई थी।
‘आखि़र मेरे सामने ये सारी परेशानियां क्यों आ रही हैं?’-हीरा, मूंगा और पन्ना की अंगूठियाँ पहनकर मेरे सामने बैठी भावना ने पूछा।
‘धन और ख़ुशियां लाने वाले सारे गैजेट्स तो आपने पहले ही पहन रखे हैं। फिर भी आपके जीवन में सफलता और ख़ुशियां नहीं हैं तो आप सोचिए कि ऐसा क्यों हो रहा है?’-हमने कहा।
‘भाई साहब! अब तो इसने कम पहन रखी हैं वर्ना तो यह दस की दस उंगलियों में अंगूठियां पहनती थी।’-भावना की मम्मी ने बताया।
‘अंकल! आप बताईये, क्या कारण है?’-भावना ने अपने दिमाग़ पर कोई ज़ोर डाले बिना ही फिर से सवाल कर दिया।
‘आपके अंदर नकारात्मकता है। आपके अंदर नाशुक्री है। जिस गॉड ने आपको पैदा किया और इतना अच्छा रंग और अच्छा क़द दिया। आपने कभी उसका शुक्र अदा नहीं किया।’-हमने उन्हें यह जानते हुए भी बताया कि वह मानेंगी नहीं। कोई भी आदमी यह नहीं मानना चाहता कि वह अपने क्रिएटर का नाशुक्रा है। हरेक आदमी ख़ुद को अच्छे गुणों से भरपूर मानता है। वह चाहता है कि उसकी नाकामियों और उसकी परेशानियों की ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल दी जाए कि उस आदमी ने साज़िश कर दी या उस आदमी ने जादू कर दिया। भावना भी कुछ ऐसा ही सुनना चाहती थीं। हमारी बात से उन्हें झटका लगा।
‘नहीं अंकल, मैं गॉड का तो बहुत शुक्र अदा करती हूं।’-भावना जी ने कहा।
‘अच्छा, अगर ऐसा है तो आप गॉड का नाम बताईये।’-हमने उनसे सवाल कर दिया। इस सवाल पर वह चकरा गईं।
‘गॉड का नाम तो पता नहीं है।’-उन्होंने शर्मिन्दगी के साथ क़ुबूल किया।
‘आपको अपने पैदा करने वाले गॉड का नाम तक मालूम नहीं है तो फिर आपने उसका शुक्र कैसे अदा कर दिया?’-हमने कहा। उन्हें चुप रह जाना पड़ा।
‘जिस मालिक ने आपको इतना ख़ूबसूरत जीवन दिया। आपने उसका शुक्र अदा नहीं किया लेकिन शिकवे पाल लिए। यह सोचने का ग़लत पैटर्न है। शिकवे-शिकायत का मतलब है कि आपकी सोच जीवन के अभाव पर कन्सन्ट्रेट है। यह सोच आपके जीवन में और ज़्यादा अभाव लेकर आती रहेगी। इसके बजाय आप यह देखें कि उस रब ने आपको कितना कुछ दिया है। इससे आपके अंदर शुक्र का जज़्बा पैदा होगा और इसके बाद आपके पास हर वह चीज़ बहुत कम कोशिश से आने लगेगी जिसकी तुम्हें ज़रूरत होगी।’-हमने उन्हें समझाया।
‘आपने तो इनसे कहा था कि कोई मेरे पीछे भी पड़ा है।’-भावना जी ने सलीम भाई की बेटी की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा।
‘हां, यह सच है।’-हमने कहा।
‘मतलब...?’
‘मतलब यह कि आप पर कुछ ऐसा असर भी है जिसे पुराने लोग नज़र और जादू कहते हैं और आजकल के एजुकेटिड लोग जो इन नामों से चिढ़ते हैं वे इन्हें ‘सायकिक अटैक’ कहते हैं।’-हमने उन्हें खोलकर बताया।
‘इसके पीछे कौन है?’-हमने कहा कि यह सब हम नहीं बताएंगे बल्कि आप ख़ुद देख लेंगी, ...लेकिन इसके लिए हम आपको कोई तावीज़ वग़ैरह देने वाले नहीं हैं बल्कि आपको आपको अपने सोचने का पैटर्न बदलना पड़ेगा।’-हमने कहा।
‘अंकल! आप मुझे तावीज़ ज़रूर दीजिएगा।’-भावना जी ने कहा।
‘आप ज़िद करेंगी तो हम आपको तावीज़ दे देंगे लेकिन तब काम होने की कोई गारंटी नहीं है।’-हमने कहा।
वह ख़ामोश रहीं। फिर बोलीं-‘अच्छा मुझे क्या करना होगा?’
‘आपको सबसे पहले अपने गॉड से, ईश्वर से, जिसने आपको पैदा किया है, उससे माफ़ी मांगनी होगी कि उसने आपको जीवन दिया और बड़े बड़े अहसान किये लेकिन आपने कभी उसका शुक्र अदा नहीं किया। रात को जब आप सोने के लिए बिस्तर पर लेटें, तब आप 2 मिनट तक उससे माफ़ी मांगे और फिर आप कुछ देर तक उस ईश्वर की पवित्रता का ध्यान करें और ‘सुब्हान-अल्लाह’ कहती रहें। आप ईश्वर को जिस गुण के साथ याद करेंगी, वह आपके जीवन में भी आ जाएगा। आपके जीवन में पवित्रता आएगी तो आपका मन हल्का हो जाएगा। जिसका असर आप अपने तन पर भी महसूस करेंगी और फिर आप उसका असर अपने जीवन में भी देखेंगी। आपका हरेक कष्ट आपसे ख़ुद ही रूख़सत हो जाएगा।
क़ुरआन में हज़रत यूनुस अलैहिस्-सलाम के कष्ट दूर होने की वजह उनका तस्बीह (पवित्रता का बयान) करना बताया गया है। आपकी आंख रात में खुल जाए तो भी आप तस्बीह करें और सुबह को उठकर भी पहला काम यही करें और दिन में भी थोड़े थोड़े समय बाद ‘सुब्हान-अल्लाह’ कहती रहें। आप 40 दिन तक ऐसा करती रहें। इससे ईश्वर की पवित्रता का विश्वास आपके मन में गहराई तक बैठ जाएगा। तब आपके सोचने का पैटर्न बदल चुका होगा। आपकी सफलता की कुंजी आपके अंदर ही है। सबकुछ इनबिल्ट है। आपको अपनी चीज़ों से काम लेना सीखना होगा। इनमें सबसे बड़ी चीज़ आपकी सोच है। आपकी सोच आपके जीवन को प्रभावित करती है। आज आप जो कुछ हैं, वह आपकी पिछले दिनों की सोच और मेहनत का नतीजा है। अब आप जो सोचेंगी, उसका नतीजा आपको आने वाले दिनों में दिख जाएगा। पुरानी भावना की जगह एक नई भावना सामने आती चली जाएगी और आपको अहसास तक नहीं होगा।’
‘मेरे ऊपर अटैक के पीछे कौन हैं।’
‘क्या ज़रूरत है यह जानने की?’
‘अपने बचाव के लिए।’
‘ठीक है, आप ख़ुद ही देख लेंगी।’-हमने कहा। हमारे बच्चे वहां ज़रूरत की वजह से आ जा रहे थे। हमने अपने बड़े बेटे को पास बैठा लिया। व्यक्ति विचार है। विचार ज़िन्दा है तो व्यक्ति भी ज़िन्दा है। जो विचार अब हमें अपने उपयोग में ले रहा है, उसे हमारे बाद हमारे बेटे के दिल में होना है, इस तरह शरीर बदलेगा लेकिन मन की भावना नहीं। हमें अपने बच्चों को ज़िन्दगी और मौत की हक़ीक़त और इनसे काम लेने का तरीक़ा बहुत बारीकी से सिखाने की ज़रूरत है।
‘मेरी बहन के पति विदेश जाने की कोशिश कर रहे हैं। क्या वह जा पाएंगे?’-भावना ने पूछा।
‘ठीक है, यह हम देखकर बता देंगे, ज़रा चाय पी लें।’-हमने सिप लेते हुए कहा और फिर सोचा कि यह तो हमारे बेटे भी देख लेंगे। हमने चाय पीते हुए ही अपने बेटे से कहा कि ज़रा देखकर बताना। बेटे साहब मुराक़बा (ध्यान) के माहिर हैं। वह नमाज़ में सज्दे ज़रा लम्बे करते हैं। उन्होंने आंखें बन्द करके सवाल पर ध्यान किया और दो मिनट से भी कम वक्त में उन्होंने लैन्ड करता हुआ हवाई जहाज़ देखकर कहा कि हां, विदेश जाने के काम में कामयाबी पक्की है।
‘मेरे भाई की जॉब का क्या होगा?’
‘वह भी लग जाएगी। आपका हर काम बनता चला जाएगा। जो ईश्वर सारी गैलेक्सीज़ को संभाले हुए है, वही आपके सारे काम करता आया है और करता रहता है। आप उस पर भरोसा करें। ज़िन्दगी के तल्ख़ तजुर्बों को याद न करें। किसी ने आपको सताया हो तो भी यह राय न बनाएं कि यह दुनिया बड़ी ज़ालिम है और लोग बड़े ख़ुदग़र्ज़ हैं। ऐसे लोगों के लिए भी आप भलाई की दुआ करें और जो नेमतें आपके पास हैं, आप उनके बारे में सोचें, उनके बारे में उस मालिक का शुक्र अदा करें।
आपको जुगाड़ का जीवन साथी नहीं बल्कि आपके मन का मीत, सोल-मेट मिलेगा। आपको जैसा जीवनसाथी चाहिए। उसके रूप-रंग, एजुकेशन, आमदनी और शहर के बारे में बिल्कुल साफ़ साफ़ सोचिए और फिर उसे एक काग़ज़ पर लिख लीजिए। उसके बाद आप उस रब से दुआ कीजिए। बिल्कुल वही जीवनसाथी आपको मिल जाएगा। वह विदेश में हुआ तो भी मालिक उसे आपके पास ले आएगा। वह बिना किसी दहेज के आपको अपनाएगा।
जो लोग कन्फ़्यूज़ होते हैं और दहेज देने की तैयारी किए रखते हैं। उन्हें लालची लोग ही मिलते हैं और वे उनके साथ कैसा भी सुलूक करते रहते हैं। आपका शक, आपका डर और आपकी चिंताएं आपका भला नहीं करतीं बल्कि आपको बर्बाद करती रहती हैं।’
विदा होने से पहले उन्होंने सलीम भाई की बेटी को कुछ नोट देकर हमसे जानना चाहा कि क्या हम कुछ रूपये लेना चाहेंगे?
हमने कहा कि हम लेते नहीं हैं बल्कि देते हैं। बहरहाल वे तीनों रूख़सत हो गए और अगले ही दिन भावना ने फ़ोन करके बताया कि उनकी मम्मी ने हमारे बताए तरीक़े से ज़िक्र किया और फिर सो गईं तो उन्होंने सपने में एक बहुत ऊँचा पहाड़ देखा जो कि आकाश को छू रहा था।
हमने कहा कि यह आपकी सफलता है, जो आपकी मम्मी ने देखी है।
भावना ने बताया कि मैंने तीन लोगों को एक काला कपड़ा लेकर अपनी तरफ़ आते हुए देखा।
हमने कहा कि ये आपके दुश्मन हैं।
भावना ने कहा कि लेकिन ये लोग हैं कौन?
हमने कहा कि आपको तरीक़ा बता दिया है। आप उसे करती रहें। हर चीज़ आप पर ख़ुद ही खुल जाएगी।
भावना ने यह भी बताया कि अब वह बहुत हल्का महसूस कर रही है।
यह उनका मन था। यह हमने उन्हें नहीं बताया।
भावना ने बताया कि एक टीचर जो उनकी कम्पिटिटर है, उस पर आज डाँट भी पड़ी है। एक दिन में इतना सब, यह एक बड़ी कामयाबी थी।
उसके एक दिन बाद भावना का फ़ोन फिर आया। उन्होंने बताया कि आज उन्हें सपने उनकी सबसे ख़ास सहेली नज़र आई जो उनके साथ ही टीचर है। उसने कहा कि तेरी दुश्मन कोई और नहीं बल्कि मैं हूँ।
मुझे आज तक किसी ने कुछ नहीं कहा। सबके बारे में यही टीचर मुझे इन्फ़ॉर्म करती आयी हैं। क्या मैं इस सपने पर यक़ीन कर लूं?
हमने कहा कि अभी आप सिर्फ़ एहतियात बरतें। हर चीज़ आप धीरे धीरे खुलती चली जाएगी।
भावना ने बताया कि वह ख़ुद को अब और ज़्यादा हल्का महसूस कर रही हैं। उन्होंने अपनी मम्मी के बारे में भी पूछा कि वह श्रीकृष्ण जी का कीर्तन करती आई हैं। अब आपने प्रार्थना का यह तरीक़ा बता दिया है। उनके लिए बड़ी मुश्किल हो गई है। वह क्या करें?
हमने कहा कि हम भी श्री कृष्ण जी को और श्री रामचन्द्र जी को मानते हैं। हम पक्के मनुवादी हैं।
भावना को यक़ीन नहीं हुआ। उन्होंने ताज्जुब से पूछा कि क्या आप इन्हें मानते हैं?
हमने कहा कि हां, ये हमारे पूर्वज थे। हम इनका आदर करते हैं। हम इन्हें महापुरूष मानते हैं लेकिन इन्हें ईश्वर नहीं मानते। महापुरूषों को महापुरूष मानना चाहिए और ईश्वर को ईश्वर। आप भी ऐसे ही मानिए। कीर्तन से प्रॉब्लम नहीं है लेकिन कीर्तन में कुछ ऐसी बातें कह दी जाती हैं जो न तो श्रीकृष्ण जी की शान के लायक़ हैं और न ही ईश्वर के। ऐसे कीर्तन से ज़रूर परहेज़ करना चाहिए और प्रार्थना एक ईश्वर के सिवा किसी और से हरगिज़ हरगिज़ नहीं करनी चाहिए। बहुतों से प्रार्थना करना एक ईश्वर की भक्ति और अनन्य निष्ठा के खि़लाफ़ है। एक ईश्वर से मांगने के बाद किसी और से मांगने की ज़रूरत ही शेष नहीं रह जाती। महापुरूष को ईश्वर और ईश्वर को महापुरूष समझ लेना अज्ञान है।
भावना ने कहा कि हमारी मम्मी केवल कीर्तन करती हैं लेकिन श्री कृष्ण जी से प्रार्थना नहीं करतीं।
इसका मतलब यह हुआ कि भावना को न कीर्तन के बारे में पता है और न उसमें कही जा रही बातों के बारे में। यह उनकी मम्मी के लिए केवल एक सामाजिक सांस्कृतिक परम्परा मात्र है। हर तरफ़ लोग बहुत कुछ कर रहे हैं लेकिन वे उनके मक़सद और सही तरीक़े को जाने बिना ही कर रहे हैं। जिसकी वजह से धार्मिक परम्पराओं का रूप विकृत हो जाता है। ऐसे लोगों की आज बहुत बड़ी तादाद है और आज यही लोग धार्मिक कहलाते हैं।
अधिकतर लोगों को सही-ग़लत और ज़िन्दगी के मक़सद से सरोकार कम है। उन्हें अपनी समस्याओं का हल और फ़ायदा दरकार है।
इस एंगल से भी धर्म और प्रार्थना फ़ायदेमन्द है। इससे हमें मन की शान्ति और एकाग्रता मिलती है। जीवन में शान्ति और एकाग्रता हो तो हम अपनी क़ाबिलियत का ज़्यादा अच्छा इस्तेमाल कर पाते हैं। यह एक जानी मानी हक़ीक़त है।
आत्म-विकास के लिए शान्ति एक बुनियादी ज़रूरत है। यह सुब्हान-अल्लाह कहने और उसके भाव को मन में समा लेने से सहज ही मिल जाती है।
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Special note: यह पब्लिश होने के बाद अभी अभी यानि 5:30 बजे शाम भावना जी ने फ़ोन करके बताया है कि उनके भाई की जॉब लग गयी है और उनके स्कूल में एक नया सेक्शन खुलने की शुरुआत हो गयी है जिसमें हो सकता है कि वही सब्जेक्ट पढ़ाया जाये जोकि वह पढ़ाना चाहती हैं.

Thursday, January 30, 2014

THE BLESSING MONEY BAG THAT WOULD HELP EVERYONE TO BE RICH IN THE MONTH OF RAMADAN


By Hazrat Hakeem Mohammad Tariq Mahmood Chughtai
Courtesy of Ubqari Monthly Magazine, July-2011
Printed in Lahore, Pakistan (contact @ubqari.org or support@ubqari.org)


Dear Readers! I Bring to you precious pearls and do not hide anything, you should also be generous and must write. 

Dear Readers! A few days ago, the idea suddenly came to me that Ramadan ul Mubarak is near and why shouldn’t I give my readers an Amal of My Sheikh (Rahmit Ullah Alih) that I have been giving people individually for many years now. And my Sheikh (Rahmit Ullah Alihe) has proven this Amal to be beneficial with the seventy years of his own and his Elders experiences as well. Readers Amal is just a unique secret to be rich that every person can do. This is the era of poverty and inflation. And poverty is increasing day by day and it is getting harder to make ends meet. Every person is tangled in inflation, hunger, disasters and super natural problems. There are numerous issues of this era and people really need an Amal that is precisely accurate and effective as well.

Dear Readers! Today I am giving you that Amaal that will prove for you and your generations to be precise and effective as well. The story of this Amal is that it was the beautiful morning of 1984 A.D. the day I got the fellowship of my Sheikh Hazrat Khawaja Syed Mohammad Abdullah Hajveri (RahmitUllah Tallah Alih). After some time the month of Ramadan ul Mubarak came and I saw many people to learn the Amaal of Blessed Money Bag (Barkat Wali Theeli) from Sheikh (Hazrat). As it was the beginning of my fellowship and I didn’t knew about it so I was amazed and questioned within myself As Ya Allah what is this Amal? 

I got to know that every Ramadan ul Mubarak Sheikh (Hazrat) give this Amal to people who are poor, destitute and under debt or people with big families, finding it hard to meet ends, less income and tangled in problems and issues. Hazrat used to say that even his Sheikh used to tell people of this Blessed Bag Amal in Ramadan and people used to come to him before Ramadan to listen, learn and understand this Amal and later practiced it as well. It was famous that every Ramadan we must go to our Sheikh and learn of this Amal from him. 

Dear Readers, I have even heard many people say that this Money Bag Amal is not just any ordinary money bag, it’s indeed a treasure. And another individual told me that it is a never ending treasure. And we do this Amal on our money bags throughout the month of Ramadan and then continue it through the year. And rejuvenate (Tajdeed) it in next Ramadan as well.
It once happened in the presence of my Sheikh that a person visited him and he was surrounded by poverty and hunger. He used to be rich and owned several shops however when poverty hit him he was made to sell water melons on a push cart. Sheikh (My Hazrat) told him that Ramadan is near, have a money bag stitched and bring it to him. I would do an Amal on it and will tell you of a blessed Amal too. You and your whole family shall do that Amal. If you like to every person in the house can make his own money bag or the whole family just do the Amal on a single money bag. He had the money bag made by the next day and brought it to Sheikh; Sheikh told him the procedure of the Amal. He was happy and amazed as well, that it was an easy Amal and thus he left. More or less after seven or eight months he returned. As Sheikh (Hazrat) has gone somewhere and I was sitting there. He asked of Sheikh and I told him that Sheikh would return after some time. During our conversation he said that I came to thank him. And to tell him that he pulled me out of poverty and hunger otherwise the only end to the kind of poverty and destitution I had fallen was either suicide or Kufir (transgressing from Islam). I asked him what the Amal was. He told me of the whole Amal and showed me his money bag too. This was the first instance that I got truly introduced to the Blessed Money bag. After this thousands instances came in to my observation and the benefit continued to be passed onto the Creatures of Allah Subhan Wo Tallah.

Another incidence happened in the presence of Sheikh, a woman with her husband and five young kids visited. She said that these kids don’t have the uniform for school nor books, sometimes these kids get one piece of bread (Roti / Chapati) at a meal and sometimes half. Poverty, hunger and miserliness are at their peak. And due to this poverty and hunger there is always fighting and verbal and physical abuse in the house. I am tired and have given up. I came so that you will pray for me and give me some Amal as well.

Sheikh prayed and was kind to them. And told them to continue this blessed money bag Amal. And near Ramadan bring me a money bag and I will tell of an Amal for it and the whole the family shall do that Amal on the money bag. If not everyone can do it, most of them shall try. InshAlIah your life will change. And then I saw myself that Allah Subhan O Wa Tallah changed their days with the blessing of this Amal. There days and nights were enlightened, issues resolved, problems vanished. And the same people I saw them coming on a car. There used to be times when these people didn’t even have the money for a horse coach.

Another incidence that I would like to narrate is once I was on a journey with my Sheikh, and we had to go to Lahore Railway Station, we took a horse coach, Sheikh sat in front with the coachman and I sat on the rear. The horse was slow and we were getting late from our Train. I asked him to make the horse go faster and he replied that it can only do this much. I asked him, is he ill, he said no, shall I provide for him or for my kids. When I and my children don’t have food neither will he have it. I felt his answer unique and I just spoke instantaneously to him that why don’t you take the Blessed Money Bag? And why don’t you do that Amal? He replied that I am an illiterate person. I asked him about his wife and kids, he said that they are literate. I was talking to him that Sheikh added that it is good, do tell him of the Blessed money bag. And ask him to bring the bag before Ramadan to us; we will do an Amal for him on it. And will tell him of an Amal too. If he will do it Allah Subhan Wo Tallah will bless him with Barkat. I made him understand the Amal, asked him to have the money bag prepared and start the Amal, and told him of the address of Sheikh. After a few days he came to Sheikh with his wife and a child. They told their story that many times we don’t even have a handful of Flour for bread (Roti / Chapati) in house, electricity has been disconnected, (in those days Natural Gas was not available in every house as the it was being newly installed in Lahore, Pakistan for domestic use at that time, so they didn’t had firewood or electricity in house.). Poverty is at its peak, someone tells of black magic, someone of Ghosts, someone of black spirits. I am too tired now, and have given up, what shall I do? Twice or thrice I actually willfully hit my horse coach with a truck to commit suicide. It’s better that me and my horse both shall die as both of us have nothing to eat. The horse also stays hungry as I don’t have money to buy his fodder. However Allah Suhan Wo Tallah has saved me now, you are here and you have shown me a light of hope. Relatives have left us, even my wife sometimes says that either bring me food or take me to my parents. Where shall I go? Sheikh consoled him, and provided him with some money maybe it was Three Rupees and told him to be calm and take your blessing from this money bag and guided him with Blessed Money Bag Amal and thus he left.

Dear Readers, it’s a matter of trust and faith, that man actually learnt Surah Kausar (Surah 108, Al Quran) and after a while he even started the Amal. However his family started the Amal right from the very first day. It wasn’t long enough, maybe like seven or eight months that man came with prosperity evident from his face. He said that I have bought two more coaches and have given them on rent. I have made a wooden door to my house entrance as we didn’t used to have one. We have made the bathroom wall (with bricks and mortar) and added a door to it previously there just used to be a cloth hanging. And he told of few more such things. He said that now I get more passengers, and amazing thing is that the money has more Barkat in it. Even if we have little money leftover it fulfills the need. And Allah Subhan Wo Tallah is giving me peace and Barkat from Divine.

Dear Readers, these three incidences were of my Sheikh; but there are numerous stories of this Amal however I am narrating a few. Another instance that I would like to narrate is in the year 1991; I remember the year because this incidence was very tragic. A person came to Sheikh, and said that I used to be an owner of a Cotton Ginning Factory, I owned one of them and took two more on lease. I Was surrounded with riches, servants, employees, had one house in Lahore (One of Pakistan’s richest metropolitan cities) and another one in Islamabad (Pakistan’s Capital City), an apartment in Murree (A hilly summer retreat spot in Pakistan). And I myself belonged to Vehari. The whole system was being financed through banks. People used to say to me that don’t run your business on bank financing and I myself once read the quote of Hazrat Abdullah Bin Masood Razi Allah Tallah Unho that the end of Interest financing is poverty and destitution. And my end was similar too. People’s attitude towards me changed, my days and nights toppled, things vanished, everything was lost, and I left my home city Vehari as well. Lenders disturb me and now I have taken a very small house in Lahore and working on daily wages in a restaurant, in the morning I go to restaurant and boil his milk, wash his utensils, and work for him. Clean his floors, tables and everything. Then in afternoon return with whatever wage I get from him and provide for my family’s lunch. Then after Asar prayer (in afternoon) I work at another house, I clean their house and bathrooms, wash their clothes and do all other households works. Someone told me of you that you are an Allah’s Pious and noble person, and pray for people and give some Amaal too. I am too tired of this poverty and hunger, what shall I do?

Before this I have seldom seen Sheikh crying in presence of others; however his story was so tragic that even sheikh cried and tears fell from his eyes. Hazrat put both of his hands on his head to console him and said that do not worry, do not lose hope InshAllah your life will change. Your problems will vanish; your issue will resolve and told him of the Blessed Money Bag Amal. And asked him to have money bag stitched and bring it to him and he will do an Amal on it and told him of the Surah Kausar Amal to read it on the money bag. You and your whole family shall read it and then before Ramadan come to me I will tell you of an Amal, do that as well and thus he left.

He came before Ramadan and had his Blessed Money bag read by Sheikh on it. And asked for the special Ramadan Amal for the Blessed Money Bag. Trust me readers, he did the Amal whole heartedly, and with full effort and only one and a half year went that my eyes saw him getting so rich and prosperous that I have seldom seen anyone getting such kind of blessings.
Allah Subhan O Wa Tallah blessed him with so Riches, honor and Barkat that even I was amazed. He used to say himself that I couldn’t have imagined that even my life can change. And I can come out of poverty and hunger as well. And I can gain something in life, I had lost all hope but now I have a new hope and there are blessings in Allah Subhan o Wa Tallah’s treasures that one who seeks them can attain them. It is just our fault that we don’t try. 
Readers I have thousands of incidences of this Amal and I can’t narrate all of them to you but if the Blessed Money Bag will stay with you always, you will always have Barkat. Just recite Surah Kausar on it 129 times. Either once or twice a day. The more you recite on it the more Barkat you will attain. However when you recite Surah Kausar on it in Ramadan it is source of unique blessings (Taseer) and Barkat. A few years back I told this Amal to a person and when he met me again he told me that Ramadan is near and I have prepared numerous money bags so tell me of the special Ramadan Amal for the Money Bag. 

He said that a strange incident happened to me, I have a young daughter and I had to afford her marriage expenses I had three money bags prepared one each for my wife, daughter and me. I told my daughter that I would keep on giving you money frequently and you keep it in your money bag. And keep on reciting Surah Kausar on it 129 times on it twice a day. All of us continued this Amal on our money bags. After exact seventeen months we opened her money bag and started counting the money in it. I knew I used to give her small notes as I didn’t had any larger denominations and sometimes I didn’t even had anything to put in. but I always did the Amal. When I counted the money I was amazed, that in seventeen months two hundred eighty five thousand six hundred and thirty four rupees were present in it. I was surprised as where did such an amount came from, my salary is not so much and we have huge household expenses and never contributed larger notes even but it just struck to my mind that you are missing Allah Subhan O Wa Tallah’s Blessing. You are looking at your ability then where would Allah Subhan O Wa Tallah’s blessing go. While saying this tears came to his eyes and he cried. 
Another man told me that I did this special Ramadan’s Amal on the money bag and my life changed. I used to contribute to Committee (Similar to credit union savings) and I never got funds from it but now I get them, previously I didn’t have Barkat in home. I had two shops, one was closed the other had very little inventory left and it was on the way to closure as well, those shops are now running well. Home needed maintenance that I have now got done too and spent major money on it. My motorcycle was not running and required major expense, I had it fixed as well. He had a list of such things that he kept on telling me that he had so and so things done and his life has changed.

Another person from USA said that people consider me as a king of a Dollar minting country (USA) instead that countries money lacked Barkat and it has ruined me. I settled in USA after selling everything from Pakistan and today it’s been twenty two years that I am still under debt and have many outstanding installments due on me. I owe many people in Pakistan and I am unable to provide for my family. I do three jobs, wife and children also have jobs and only then we are able to make our ends meet. But the situation stays the same and the last few days of the month are miserable. Our situation is desperate. I have returned to Pakistan after eleven years, didn’t had money to pay for the ticket. Day & night, we are entangled in issues and problems, mental unrest, bad dreams at times make me scream. I have lost hope with these times in life. Please pray for me. I told him of the Blessed money bag Amal (one that is for throughout the year) and also made him understand the special Ramadan Amal as well. 
The person left, the news that we got of him through his paternal relative as he never returned. And his relative came to give the news for him. And he told that Allah Subhan O Wa Tallah has given him so much that he has bought a nice new house, and sold out the old one, bought a new car, all of his debts have been paid off and is at peace now. All problems have been resolved and worries vanished. And his relative brought his Salam (Muslim greetings) to me and that I couldn’t meet you it is my mistake and pressing situation as well. But I have given this Amal to thirty six people and not even a single person was who didn’t got benefit through this Amal. One of the persons was a cab driver and he had this motivation to spread this Amal. He bought the cloth and had the money bags stitched on his own and then and after getting them prepared he used to distribute it to his passengers and friends and family as well. And used to tell them the Amal for everyday and the special Ramadan’s Amal as well. The cab driver was Abdul Khaliq from Mirpur Azad Kashmir, Pakistan and he said that he has given it to hundreds of people. And I have got successful news of numerous people among them. And many successful people then later spread this Amal as well.

Dear Readers, in the month of Ramadan the Barkat of Allah Subhan O Wa Tallah are pouring, blessings are spread, where we get Jannah, we also get Rizk (Money) and prosperity. Let’s take the most benefit from this Ramadan. I shall tell you one thing that you will definitely get the benefit. I don’t say that if you will do it then you will get the benefit. I say you will definitely get the benefit. And the benefit that you get, do write it to us, and you must write it to us, writes it in slang but do write your benefits. I give you heartily secrets and often insist that you shall also send your experiences to Ubqari Office as well. You shall write it so that millions would benefit from it.

Dear readers, before giving you this Amal, I will say this much if you do this Amal keeping in view Allah’s Happiness (RAZA) and from the core of your heart the more benefit you will get. And more profitable it will be. I had so many stories and stories of people that were about to commit suicides, had left homes and families, poverty, hunger and debts compelled them to transgress from Islam. Even in my life I know of a person who left his religion just because of poverty. I requested him and spent time with him convincing him to return to religion and told him of the blessed money bag Amal and also gave him the special Amal of Ramadan. And asked him to do it. With the blessing of Allah Subhan O Wa Tallah he said that I didn’t prayed three prayers of Eid but this Ramadan’s Eid prayer, I prayed. And he renewed his Iman (Faith, i.e. TAJDEED e IMAN), and renewed his marriage vows (i.e. TAJDEED of his Nikah) and became Muslim once again and Allah Subhan O Wa Tallah once again made him rich and generous.
I would add another thing, that if Allah Subhan O Wa Tallah will make you rich and generous don’t forget the poor and remember them in your charity and give them good. The Kareem Allah that has blessed you with these blessings after poverty and miserliness don’t forget his creatures. Do have a part of your blessed money bag for them. And another thing that you can spread this Amal you have permission to do that. We have arranged for this money bag, people used to visit tailors and some used to ask for forty, fifty or sixty rupees for it. We had this money bag stitched in large numbers from pious individuals, and keeping the stitching and other expenses that were incurred on it we have announced to give it for twenty rupees. So that it shall reach the creation of Allah Subhan O Wo Tallah at the minimum expense possible. And I have prayed on it myself. And you can have this blessed money bag mailed (DUM SHUDA) or purchased yourself from Ubqari office. 

This blessed money bag is neither our source of income or trading item. We have provided, as it is difficult for people to have it made and those that have it made don’t have it done that as it is supposed to be. We want the people to get the benefit and the bag should reach them at the minimum possible cost. 

Another incidence came to my mind towards the end, which I will narrate in short there used to be a family who was known for its generosity and was famous that no one in need ever left their door empty. 

My respected mother gave me a few things to take it to their house, when I went in their house I saw poverty and paucity in everything. The condition of the house was telling that their situation is not like before. I told of this to my respected mother and she was surprised that they didn’t even tell anyone. However after some inquiry we got to know that their situation has worsened. And mother helped them in a noble manner but they refused to take it. I had the Blessed money bag Amal of my Sheikh and I took a money bag and taught them the Blessed Money Bag Amal and insisted on the Special Ramadan’s Amal as well. And then ten days before Ramadan went to them and again insisted that Ramadan is near and you must carry out this Special Ramadan’s Amal. While I was insisting on the Ramadan’s Amal the old lady of the house, wiping tears from her eyes said that you have saved our honor and respect. Since the day you gave us the money bag and every person of our house has been reciting 129 times Surah Kausar on it twice a day. With seven times Durood Sharif in beginning and end of the Amal our life has changed. Blessings have poured; kindness and bounties have been directed towards us. Our situation has changed and we have become prosperous. And inshAllah we will definitely carry out this Ramadan’s Amal as well. I told them that I will visit them again after Ramadan too. 

As they were my relatives so I visited them again after a few days of Ramadan, and asked them and every person of their house said that we have found a blessings treasure, someone said that we have found a blessed money bag, someone said that Allah Subhan O Wa Tallah’s special mercy has been bestowed upon us. Our prayers have been answered that Allah Subhan O Wa Talah sent you as a guide towards us. Otherwise our condition was not like that we could face the society. Our whole household has been sold but we didn’t told about it to our relatives, neither had we returned any beggar from our door. Even if we didn’t have anything we would still give him something but this blessed money bag has been outstanding.
Dear readers, spread this article I intentionally sent this article a month ahead of Ramadan to be printed in Ubqari. So that you can prepare for the blessed money bag ahead of Ramadan. And start the daily Amal right ahead and the special Ramadan Amal shall only be done in Ramadan. 

Dear readers now understand this Amal, There are two Amaal, one is for reading on your money bag throughout the year i.e.
1. Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 129 times with 7 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag.
2. Repeat it twice a day, once in morning and once in eve.


Then there is the Special Ramadan Amal
1. On the First Ramadan’s night
(I.e. When the Ramadan moon is sighted and tomorrow is the first of Ramadan)
Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 313 times with 3 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag.
This Amal can be done at any time in that night, however if you can’t do it at night then you can do it on the day of First Ramadan. Every person of the house shall do it, and every person can also keep his own money bag. And read the Amal on it. This is the Amal for the First of Ramadan.

2. Then on the night of start of second Ashra i.e. on the night of Eleventh of Ramadan 
Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 313 times with 3 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag. 
This Amal can be done in any part of night and the day of Eleventh Ramadan, but its better if you do it after the Eleventh Tarawih Prayer.

3. Then on the night of start of third Ashra i.e. on the night of Twenty First of Ramadan 
Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 313 times with 3 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag. 
This Amal can be done in any part of that night and the day of Twenty First Ramadan, but it’s better if you do it after the twenty first Tarawih Prayer maybe it is Shab e Qadir that night too.

4. Then on the day of Eid after the Eid ul Fitr Prayer
Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 313 times with 3 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag. 

5. Then there is just one Amal left i.e. on the night of Twenty Seventh of Ramadan
Read Surah Kausar with Bismillahir-Rahmanir-Rahim 1100 times with 11 times Durood Sharif in the beginning and end of it on your money bag. 
This Amal can only be done in the night of the Twenty Seventh Ramadan. This Amal can’t be done on the following day of the Twenty Seven Ramadan.

Dear readers, you can do all Amaal all year but the blessings and benefit of the prayers of Ramadan can never be achieved. The whole family can read 1100 times Surah Kausar or they can even do it individually 1100 times on the money bag (s) as well, then make Dua from Allah Subhan O Wa Tallah and sleep. This Amal has to be done only on the night of twenty seven Ramadan and is full of blessings. The more this Amal is done with purest effort and whole heartedly, rumbling in front of Allah Subhan O Wa Tallah; the greater the benefit. Every reader has permission from me. The money bag can be taken from Ubqari office or you can have your own made. The money bag at our office has already been done an Amal (DUM SHUDA) on it by me. And once again I want to say that by selling these money bags for twenty rupees we are not doing any business. Look at its make and cloth; our intention is for people to benefit from it. And may Allah Subhan O Wa Tallah make us the ones who are good for his people and save us from whims and distrust. Ameen

(The money bag is similar to a cloth pouch with a string stitched on top and the size that would hold notes without folding in length and little wider in width).

Wednesday, December 18, 2013

अवचेतन मन की शक्ति Power of subconcious mind


विचार नियम के अनुसार- हर चीज की दो बार रचना होती है। यदि आप अपने जीवन में कुछ चाहते हैं और आपने मन में इसकी साकार कल्पना नहीं की है तो वह चीज आपको नहीं मिल सकती। सकारात्मक विचारों के बार-बार दोहराने से यह कल्पना सहज ही दिखाई देने लगती है। यदि आपको कोई चीज चाहिए तो इसके लिए क्या करना होगा? सबसे पहले तो अपने मन में इसका सृजन करना होगा, तभी वह वास्तविक जीवन में प्रकट हो सकती है। विचारों का यह नियम कभी असफल नहीं होता। 


विचारों के इस नियम के साथ यदि अवचेतन मन की शक्ति को जोड़ दिया जाए तो यह नियम आपके जीवन में चमत्कार कर सकता है। अवचेतन मन की कुछ शक्तियां हैं। रात को अगर आप यह सोचकर सोएं कि सुबह छह बजे उठना है तो अवचेतन मन की अलार्म घड़ी आपको जगा देती है। आपकी आंख छह बजे के करीब खुल जाती है। कई बार तो ठीक छह बजे ही आप जाग जाते हैं। आपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है? कभी नहीं ना। यह आपके अवचेतन मन का काम है। आप उसे जो आदेश देते हैं, वह उसे पूरा कर देता है, हालांकि आपको खुद यह पता नहीं रहता कि आपने उसे आदेश दे दिया है।
पिछली सदी में एक बड़ा रहस्य उद्घाटित हुआ है, वह यह है कि हमारा अवचेतन मन मजाक को नहीं समझ पाता। यह हर बात को सच मान लेता है। मान लीजिए, आपसे कोई काम गड़बड़ हो या और आपने खुद से कहा, मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूं? आप यह बात नहीं जानते, लेकिन आपने अपने अवचेतन मन को यह बताकर अनर्थ कर दिया है। इसके बाद होगा यह कि अवचेतन मन आपके जीवन की सारी घटनाओं की छानबीन करके, आपके सामने तस्वीरें पेश करके यह साबित कर देगा कि आप सचमुच मूर्ख हैं। इसके बाद अवचेतन मन आपके माध्यम से ऐसे काम ज्यादा करवाएगा, जिनसे आप मूर्ख साबित हों। यही अवचेतन मन की शक्ति है, यही विचार और कल्पना की शक्ति है।
इस्तेमाल कैसे करें- कल्पना शक्ति का सही उपयोग मानसिक चित्रों के रूप में किया जा सकता है। मान लें, आप कोई चीज चाहते हैं, जैसे मकान या अच्छी सी नौकरी। इस तरह अंतिम परिणाम तय हो गया। इस तक पहुंचने का एक तरीका तो यह मानसिक चित्र देखना है कि आप मंच पर खड़े होकर घोषणा कर रहे हैं कि मैंने ये-ये रचनात्मक कल्पना की थी, जो साकार हो गई। दूसरा तरीका यह मानसिक चित्र देखना कि आप वाकई उसी घर में रह रहे हैं और अपने दोस्त को बता रहे हैं कि यह पूरा घर मेरे नाम है। इस पर कोई लोन नहीं है। मैंने इसे खुद अपने नाम पर खरीदा है। जब आप यह करेंगे तो कुछ समय उपरांत आप हैरान रह जाएंगे कि आपको अपनी मनचाही चीज कितनी आसानी से मिल गई। आपको अपना मनचाहा घर या अच्छी नौकरी कल्पना के उपयोग से मिली है। वैसे आपका अंतिम परिणाम चाहे जो हो, कल्पना उसे साकार करने में आपकी मदद कर सकती है। यदि आपको डॉक्टर बनना है तो मानसिक चित्र देखें कि आपका क्लीनिक है, जिसकी दीवार पर आपका सर्टिफिकेट लगा है। और हां, तारीख का ध्यान रखें। अगर मानसिक चित्र में साल यानी सन का ध्यान नहीं रखा तो उस चित्र के साकार होने में देर लग सकती है। चित्र देखते समय अगर सारी बातें ध्यान में न रखी जाएं तो गड़़बड़ की आशंका रहती है। मान लें, किसी को अमीर बनना है और वह यह मानसिक चित्र देखने लगता है कि वह नोट गिन रहा है। वह इस चित्र को लगातार देखता है। आगे चलकर होता यह है कि वह बैंक में कैशियर बन जाता है। इस स्थिति में मानसिक चित्रों की शक्ति ने काम तो किया, लेकिन उसे अपना मनचाहा परिणाम नहीं मिला। दोष कल्पना का नहीं था, दोष तो उसके मानसिक चित्र का था। उसका मानसिक चित्र स्पष्ट नहीं था। वह जो चाहता था, उसका मतलब उसने अवचेतन मन को स्पष्टता से नहीं बताया। उसने यह नहीं बताया कि मैं अमीर बनना चाहता हूं और जो नोट मैं गिन रहा हूं, वह मेरा पैसा होना चाहिए। तो महत्वपूर्ण बात यह है कि आप पूरी स्पष्टता से अवचेतन मन को बताएं कि आप क्या चाहते हैं।
इसी तरह का एक और उदाहरण देखें। एक इंसान ने मानसिक चित्र में देखा कि वह मरीजों का इलाज कर रहा है, उनका ब्लड प्रेशर ले रहा है, मरहम-पट्टी कर रहा है, सुई लगा रहा है। उसने बार-बार जब इस मानसिक चित्र को देखा तो कल्पना साकार हो गई, वह कंपाउंडर बन गया। इस तरह उसका यह मानसिक चित्र साकार हो गया। वह बनना तो चाहता था डॉक्टर, लेकिन कंपाउंडर बन गया। एक बार फिर, गलत मानसिक चित्र देखने की वजह से उसे अनचाहे परिणाम मिले। उसने अपने अंतिम परिणाम को पूरी स्पष्टता से नहीं बताया, इसीलिए अनर्थ हो गया। इसी तरह एक इंसान ने यह चित्र देखा कि वह डॉक्टर बन रहा है। चित्र सही था, लेकिन उसमें समय अवधि का उल्लेख नहीं था। परिणाम यह हुआ कि उसे डॉक्टर बनने में कई साल लग गए। अवचेतन मन को सही अवधि बताना बहुत महत्वपूर्ण है। आप अमुक परिणाम कब तक चाहते हैं, इसकी अवधि निर्धारित करना भी जरूरी है।
मानसिक चित्र देखते समय आपको उस भावना को भी महसूस करना होगा, जो अंतिम परिणाम पाने पर आपको मिलेगी। अगर आप अपने सपनों का मकान खरीद लें या आपको मनचाही नौकरी मिल जाए तो आप कितने खुश होंगे? बस उसी खुशी को कल्पना-चित्र में महसूस करें। जिस खुशी को आप पाना चाहते हैं, जब आप उस खुशी को महसूस करते हैं तो आप चुंबक बन जाते हैं और उस अंतिम परिणाम को ज्यादा तेजी से अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। वे कल्पना तो करते हैं, चित्र तो देखते हैं, लेकिन आनंद की भावना को महसूस नहीं करते। वे यह भूल जाते हैं कि भावना ही तो वह ट्रिगर है, जिससे अंतिम परिणाम साकार होना शुरू होता है।
मानसिक चित्रों की शक्ति का उपयोग दूसरों के लिए भी किया जा सकता है। वस्तुत: करना ही चाहिए। अपने लिए कल्पना करते समय मन में बहुत से नकारात्मक विचार आते हैं। डर लगता है कि होगा कि नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप अपनी समस्याओं से बहुत जुड़े होते हैं। लेकिन जब आप यही काम दूसरों के लिए करते हैं, तो इसे आप अलगाव से करते हैं। तब आपके मन में ज्यादा नकारात्मक विचार नहीं आते। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है। इसलिए दूसरों के लिए कल्पना करें और उसमें वे चीजें देखें, जो आपको चाहिए। यदि आप नौकरी चाहते हैं, तो कल्पना करें कि आपके बेरोजगार दोस्त 
को नौकरी मिल गई है। ऐसा करने पर आप निमित्त बन जाएंगे। हां, यह बात जरूर ध्यान रखें कि आपको अंतिम परिणाम ही तय करना है, तरीका तय नहीं करना है। आपको सिर्फ लक्ष्य तय करना है, उस लक्ष्य तक कैसे पहुंचें, यह तय नहीं करना है। यह तय मत करो कि मुझे इसी कंपनी में नौकरी मिलनी चाहिए। ऐसे ही मिलनी चाहिए। फलां इंसान इस कार्य में मुझे मदद करेगा, तभी नौकरी मिलेगी। कुदरत आपकी इच्छा पूरी करने के लिए सबसे अच्छा, सरल, सुगम और सीधा रास्ता खोज लेगी। आपको तो इसे बस इतना भर बताना है कि आप अंतिम परिणाम क्या चाहते हैं। 
यदि आप अपने अवचेतन मन से कहते हैं कि मेरी मदद करो, मुझे एक अच्छी नौकरी की सख्त जरूरत है तो इतने भर से ही आपके अवचेतन मन तक संदेश पहुंच जाता है कि आपको क्या चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। केवल मंजिल तय करें, रास्ता तय न करें। केवल लक्ष्य तय करें, तरीका तय न करें। वह सब अवचेतन मन पर छोड़ दें।

Source: https://www.facebook.com/SECRET20121/posts/478360152197761

Monday, September 2, 2013

जिन्न और जादू, दुआ और दवा Quranic Healing, Allahpathy

आर्य और सैयद, ईद मिलन पर
ईद के रोज़ सैयद जावेद अहमद एडवोकेट के घर पर जाना हुआ। वह कई साल से अपने घर आने का इसरार कर रहे थे। कचहरी वाली मस्जिद में वह हमारे साथ ही नमाज़ पढ़ते हैं। पिछले साल ईद पर पहली बार उनके घर जाना हुआ या उसके बाद इस ईद पर। इस बार हम मय अहलो-अयाल (विद फ़ैमिली) गए थे। हम ड्राइंग रूम में बैठ गए और हमारी अहलिया बच्चों के साथ अन्दर ज़नानख़ाने में चली गईं। हमारे पास जावेद भाई के एक रिश्तेदार सैयद आरिफ़ साहब भी आ गए। वह एक दवा कम्पनी में एम. आर. हैं। आरिफ़ भाई सिद्दीक़ भाई के दामाद भी हैं। सिद्दीक़ भाई की बड़ी बेटी उनके निकाह में है। अल्हम्दुलिल्लाह, डा. रानी अफ़ज़ल के नर्सिंग होम में 15 अगस्त 2013 को उन्हें दूसरे सिजेरियन ऑप्रेशन से दूसरा बेटा नसीब हुआ है। सिद्दीक़ भाई हमारी कॉलोनी के इलेक्ट्रिीसिटी सुपरवाइज़र हैं।
हमारी बातचीत का मौज़ू क़ुरआन और सीरत था। जावेद भाई ने अपने बच्चों से कहा कि ‘बेटा ये हमारे अनवर भाई हैं। इन्हें दीन की बहुत जानकारी है। अब आप जो सवाल करना चाहो, इनसे कर लो।‘
शीर खाते हुए हमने कहा कि ‘भाई, सब तो हम नहीं जानते। आप सवाल पूछिए, हमें पता होगा तो ज़रूर बताएंगे।‘
जावेद भाई के बच्चों के अलावा और भी कई लोग वहां दिलचस्पी से बात सुन रहे थे। इसी दौरान सिद्दीक़ भाई के दामाद आरिफ़ साहब ने कहा कि ‘हमारी ससुराल के लोग नमाज़ नहीं पढ़ते। आप उन्हें नमाज़ पढ़ने के लिए क्यों नहीं कहते ?‘
हमने कहा कि ‘वे मुसलमान हैं, सैयद हैं। उन्हें ख़ुद पता है कि उन्हें नमाज़ पढ़नी चाहिए। फिर भी वे नहीं पढ़ते हैं तो ऐसा वे जानबूझ कर करते हैं। ऐसे में अगर हम उन्हें सीधे नमाज़ पढ़ने की नसीहत करेंगे तो वे उस नसीहत को भी नज़रअन्दाज़ कर देंगे और अगर हम उसके बाद भी उन्हें नमाज़ के लिए टोकते रहे तो वे चिढ़ने लगेंगे। हमारा दीन हमें हिकमत की तालीम भी देता है। हर बात को कहने का एक मुनासिब मौक़ा है। जबकि वह सबसे ज़्यादा असर करती है और यह तब होता है जबकि सुनने वाला क़ुबूल करने की नीयत से सुने।‘

भयानक सपना
इस बात को हुए 2 हफ़्ते भी नहीं गुज़रे थे कि सिद्दीक़ भाई का बड़ा बेटा फ़रहान हमारे घर आया। उसने कहा कि आपको पापा बुला रहे हैं। हम उनके घर पहुंचे तो सिद्दीक़ साहब ने बताया कि रात में 1 बजे के क़रीब उनके बेटे फ़रहान और उनकी बेटी सुम्बुल ने एक ही ख़्वाब एक साथ देखा और उसके बाद सुम्बुल की आंख खुल गई और वह बुरी तरह डरी हुई थी।
फ़रहान ने बताया कि मैंने देखा कि एक डरावनी शक्ल की एक औरत मुझसे मेरे बाल मांग रही है। मैंने कहा कि तू ख़ुद ले ले। उसने कहा कि मैं तुझे छू नहीं सकती। मैं लेटा हुआ था। उसने मुझ पर अपना पैर रखना चाहा तो उसके पैर में आग सी लग गई और उसने चीख़ मारकर अपना पैर हटा लिया और उसने मेरी बहन सुम्बुल के बाल पकड़ लिए।
इसके बाद सुम्बुल ने बताया कि एक डरावनी शक्ल की औरत ने मेरे बाल पकड़ लिए और वह कहने लगी तू मुझे अपने बाल दे दे। मैं मना करने लगी तो वह मेरे बाल पकड़ कर मुझे घसीटने लगी। तभी डरकर मेरी आंख खुल गई। फ़रहान और घर के दूसरे लोग भी जाग गए। बाक़ी रात जागते हुए ही कटी।

सपने भी बेकार नहीं होते
यह एक अजीब बात थी कि रात को सोते हुए दो अलग अलग लोगों ने बिल्कुल एक ही ख़्वाब देखा था। इसे हम हदीसुन्-नफ़्स (मन की कल्पना) की श्रेणी में नहीं रख सकते थे। एक ऐसा ख़्वाब था, जो अपने अंदर एक हक़ीक़त रखता है। ये सारी अलामात ‘जिन्नाती सहर‘ की हैं। सद्दीक़ साहब को उम्मीद थी कि हम इस मसले को ज़रूर हल कर देंगे। वह बड़ी उम्मीद से हमारा मुंह तक रहे थे कि हम क्या कहते हैं ?

हाज़िरातः एक रूहानी अमल
हमने कुछ कहने से पहले क्रॉस चेक कर लेना मुनासिब समझा। इसके लिए हमने हाज़िरात का एक आसान अमल किया। जिसे हमारे पाठक भी आसानी से कर सकते हैं। यह अमल बेशक आसान है। इसके लिए किसी साधना की या नियमों के किसी कठोर बंधन की ज़रूरत नहीं है। बस आदमी का दिल पाक और नीयत ख़ालिस और वह हाज़िरात के अमल का तरीक़ा जानता हो कि कैसे हाज़िरात के मौअक्कलों से अदब से बात करनी और कैसे शैतान जिन्नों को पकड़ना है और उन्हें कहां क़ैद करना है ?
आमिल के कहने से हाज़िरात के मौअक्कल जिन्नात को जला भी देते हैं लेकिन हम उन्हें जलाने के लिए कभी नहीं कहते। हाज़िरात के अमल का तरीक़ा पूरी तफ़्सील के साथ उर्दू किताबों में मौजूद है। हाज़िरात का अमल संजीदा लोगों के बीच किया जाए। जहां सब लोग इसलामी तरीक़े से बदन को ठीक तरह ढक कर बैठे हों। लड़की हो या लड़का, इलाज के वक़्त उसके घर वालों को मौजूद रखा जाए। लड़की को छूने से परहेज़ किया जाए। दुआ वग़ैरह पढ़कर दम करना हो तो बिना उसे छुए दूर से किया जाए। 

हिफ़ाज़त के लिए हिसार बनाने का तरीक़ा
सुम्बुल डबल बेड पर बैठी हुई थी। हम उसके सामने दूसरे किनारे पर बैठ गए। हाज़िरात शुरू करने से पहले, हमने सुम्बुल से अपना सिर ढकने के लिए कहा और उसकी बग़ल वाली जगह कुर्सी बिछाकर सिद्दीक़ भाई को बैठा दिया ताकि जिन्नाती अटैक के बाद वह लुढ़क कर ज़मीन पर न जा गिरे। उसकी मां और भाई फ़रहान भी दायरा बना कर कुर्सियों पर बैठ गए। पहले हमने ‘आउज़ू-बिल्लाहि मिनश्-शैतानिर्-रजीम‘ कहा और फिर ‘बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम‘ पढ़ी। फिर हमने क़ुरआन की कुछ सूरतें पढ़कर अपने ऊपर और सब लोगों पर हिसार बराय हिफ़ाज़त की नीयत से दम (फूंक) किया। इसके लिए दुरूद शरीफ़, सूरा ए फ़ातिहा, आयतल-कुर्सी, चार क़ुल, लाहौल काफ़ी हैं। बाज़ार में मिलने वाली नमाज़ की किताब में ये सब मिल जाती हैं। इन्टरनेट से भी इनका प्रिन्ट आउट लिया जा सकता है।
हमने इनके साथ अल्लाह के पाक नाम ‘या हफ़ीज़ु या सलाम‘ और आयत ‘सलामुन क़ौलम्-मिर्रबिर्रहीम‘ को भी पढ़ा। हिसार के और भी कई तरीक़े हैं, जो कि किताबों में मिलते हैं। 

हिसार के फ़ायदे
हिसार एक मज़बूत क़िले में पनाह लेने जैसा है।
हिसार करके घर से निकलें तो दुश्मनों के हमलों से और हादसों से भी महफ़ूज़ रहेंगे और डाह रखने वालों की नज़र भी बेअसर रहेगी। 
रात को सोते वक़्त अपने घर और अपनी दुकान का हिसार करेंगे तो आपका माल चोरों से महफ़ूज़ रहेगा। 
इन सूरतों और दुआओं को पढ़कर ख़याल से अपने घर और मकान के चारों तरफ़ उंगली से सात बार दायरा बना दें और फूंक दें। 
हमारी दादी साहिबा यह अमल करके सिर पर दोनों हाथ ले जाकर ज़ोर की ताली भी बजाती हैं। कहती हैं कि जहां तक यह आवाज़ जाएगी, वहां तक हिफ़ाज़त रहेगी। आज उनकी उम्र 95 साल से ज़्यादा है। अल-हम्दुलिल्लाह कभी चोरी नहीं हुई जबकि घर की छत आस पास के मकानों की छतों से मिली हुई है और घर के आंगन पर लोहे का कोई जाल भी नहीं है। आंगन बहुत बड़ा था। सो इतने बड़े आंगन पर जाल लगवाना मुमकिन भी नहीं था और ज़रूरत भी नहीं थी। हिसार का अमल जो था। 
स्कूल जाते हुए बच्चों पर हिसार की दुआएं फूंक दी जाएं तो वे हादसों और अपहरण से महफ़ूज़ रहेंगे। 
आजकल लड़कियां दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों में बलात्कारियों का शिकार हो रही हैं। वे भी हिसार का लाभ उठा सकती हैं।
हम सुबह और शाम की नमाज़ के बाद पाबन्दी से हिसार करते हैं। बरसों से हमारा यही अमल है। 

हाज़िरात का तरीक़ा
बहरहाल हमने सुम्बुल को आंख बंद करने के लिए कहा और उसे हिदायत की कि जब तक हम न कहें, वह आंख न खोले और जो भी देखे या महसूस करे उसे बोलकर बता दे। इसके बाद हमने अल्लाह से मदद की दुआ की और हाज़िरात की नीयत से ‘या रहमानु‘ पढ़ना शुरू कर दिया। बीच बीच में हम इस पाक नाम के मौअक्कल के हाज़िर होने के लिए कहते रहे। चंद लम्हों बाद ही सुम्बुल पर हाज़िरात हो गई। इस पाक नाम के मौअक्कल ने डरावनी शक्ल की उस औरत को भी पकड़कर हाज़िर कर दिया, जिसने सुम्बुल के बाल पकड़कर खींचे थे। उसकी डरावनी शक्ल देखकर सुम्बुल बुरी तरह डर रही थी। हमने उस औरत से उसका नाम और उसका मक़सद पूछा तो वह निडर हो कर हंसने लगी और उसने कुछ भी नहीं बताया।
आम तौर पर सरकश जिन्नात का बर्ताव यही होता है। ऐसे मौक़ों पर क़ुरआन की वे आयतें पढ़ी जाती हैं जहां अल्लाह ने अपने ज़ालिम और सरकश बंदों को दर्दनाक सज़ा की ख़बर दी है। इन आयतों की तिलावत के बाद वहां उन आयतों से ताल्लुक़ रखने वाले फ़रिश्ते एक्टिव हो जाते हैं और एक ज़बर्दस्त पाज़िटिव ऊर्जा क्रिएट होती है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा वाले सरकश जिन्न भयानक कष्ट अनुभव करते हैं और वे रोने और गिड़गिड़ाने लगते हैं। इस बार भी यही हआ। जैसे ही हमने चंद बार ‘सनुद-उज़्ज़बानिया‘ (क़ुरआन 96, 18) कहा तो सुम्बुल रोने लगी और वह दाईं तरफ़ बेड पर गिरकर तड़पने लगी जैसे कि उसे भयानक कष्ट हो रहा हो। यह उस लेडी जिन्न को होने वाले अहसास का रिफ़्लेक्शन था। 
इसके बाद हमने ‘या रहमानु या रहमानु‘ पढ़कर उसे गिरफ़्तार कर लेने का हुक्म दिया और सुम्बुल के और पूरे परिवार के ऊपर से जिन्न और जादू के असर के असर को ख़त्म करने का हुक्म दिया। जिसकी तामील मौअक्कलों द्वारा की गई। हाज़िरात को ख़तम करने के तयशुदा तरीक़े से हमने हाज़िरात ख़तम कर दी। सुम्बुल उठी तो उसका दिल दिमाग़ फूल की तरह हल्का था। उससे पूछा कि तुम गिर कर क्यों रो रही थीं ?, तो उसे कुछ याद न था।

बीमारी के पीछे शैतान
हमने बरसों पहले इसी कॉलोनी में वेदपाल की जवान बेटी पर हाज़िरात की थी तो उसकी भी यही हालत हुई थी। वह बेड पर पीछे की तरफ़ लुढ़क कर अपने पेट को दोनों हाथों से मसलने लगी थी। उसे जवान हुए कई साल बीत गए थे लेकिन उसे मासिक धर्म नहीं हुआ था। डाक्टर ने उसका काफ़ी इलाज किया गया था। एम्स में उसका ऑप्रेशन तक कर दिया गया था लेकिन उसकी परेशानी दूर नहीं हुई थी। वे निराश हो चुके थे। मुज्तबा भाई के कहने पर हम उनके घर गए। हमने उसे सिर्फ़ एक बार इसी तरीक़े से दम किया था और अल्लाह से उसका कष्ट दूर होने के लिए दुआ की थी। उसके कुछ दिन बाद ही उसे मासिक धर्म होना शुरू हो गया था। वेदपाल ने जबरन मिन्नत करके चाय समोसा खिला दिया था। सिद्दीक़ भाई के घर पर हमने सिर्फ़ पानी ही पिया।

मिज़ाज न मिले तो शैतान टिक नहीं पाते
अमल के बाद हमने कहा कि ये नाफ़रमान जिन्नात उन्हीं लोगों को सताते हैं जो कि नाफ़रमान होते हैं। आप सब लोग नमाज़ की पाबंदी करें और क़ुरआन की आयतें पढ़कर अपने ऊपर और सुम्बुल के ऊपर दम किया करें। सुम्बुल की अम्मी अल-हम्दुलिल्लाह पहले से ही नमाज़ की पाबंद हैं। हमने फ़रहान से पूछा कि आप नमाज़ पढ़ते हो ?
उसकी तरफ़ से जवाब नहीं में मिला।
हमने कहा कि आप लोग सैयद हैं। आपके घर से दीन चला। दुनिया ने आपसे नमाज़ सीखी और ख़ुद आपने नमाज़ छोड़ दी। आपको तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से नस्ल के ऐतबार से भी निस्बत है। आपको तो औरों से बढ़कर दीनदार होना चाहिए। हम पठान हैं। मुसलमान होने से पहले हम बुद्धिस्ट थे। हम पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ रहे हैं और आप नमाज़ नहीं पढ़ते ?

सैयद सुस्त, आर्य चुस्त
अजीब मन्ज़र था। एक आर्य सेमेटिक नस्ल वाले को नमाज़ अदा न करने पर शर्म दिला रहा था और सेमेटिक नस्ल वाला वह आदमी भी कोई और नहीं, पैग़म्बर मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक वंशज था।
आज इसलाम का झंडा आर्यों के हाथ में है। कहीं किसी सैयद के हाथ में होगा तो वहां भी आर्य साथ में खड़े हुए मिलेंगे।

रूहानी मदद के लिए रूहानी उसूलों की पाबन्दी ज़रूरी है
अगले दिन सुम्बुल पर फिर अटैक हुआ। उसने फ़रहान को गंदी गाली भी दी थी जो कि उसकी आदत नहीं थी। उसके हाथ लयबद्ध तरीक़े से हिल रहे थे। इस बार उसे अपने पास बेड पर ही वह औरत बैठी हुई नज़र आ रही थी। फ़रहान हमें बुलाने के लिए आया तो उसके घर की तरफ़ जाते हुए हम सोचने लगे कि ऐसा क्यों हुआ ? 
हम उनके घर में घुसे तो देखा कि सिद्दीक़ भाई बनियान के नीचे पट्टू का कच्छा पहने हुए कुर्सी पर बैठे हैं और बीड़ी पी रहे हैं। पीछे दीवार पर एक छोटी सी तस्वीर भी टंगी है। हमें देखकर सद्दीक़ भाई को अहसास हुआ कि उन्हें कच्छे में नहीं होना चाहिए था।

अपने कष्ट का कारण हम ख़ुद ही हैं
हमने उनसे कहा कि देखिए हमारी ग़लतियों की वजह से हम पर तकलीफ़ें आती हैं, चाहे तकलीफ़ की कोई क़िस्म हो। मुसीबत में पड़कर हम उस पैदा करने वाले रब को पुकारते हैं। उसकी रहमत हम पर बरसती है। वह मदद के लिए अपने फ़रिश्ते भेजता है लेकिन हम अपने अमल से रहमत के फ़रिश्तों को सपोर्ट नहीं करते। जहां नंगापन, नापाकी, बदबू और झूठ हो, उस जगह रहमत के फ़रिश्ते जाते ही नहीं हैं। गंदा माहौल उनके पाक मिज़ाज को सूट नहीं करता। लिहाज़ा आप घर में तहमद या पाजामा पहना करें। बीड़ी कहीं दूर जाकर पिएं। दीवार से तस्वीर उतार दें और कमरे में अगरबत्ती से ख़ुश्बू करें।
हमारे पहुंचते ही वह औरत नज़र आना बंद हो गई। सुम्बुल नॉर्मल हो गई। सुम्बुल मेन्टली उस लेडी जिन्न की ट्राँस में थी। जादू इंसान के माइंड पर अटैक करता है। अगर विल पॉवर बहुत मज़बूत हो तो जादू कम ही असर करता है और कर भी दे तो उसका असर जल्दी ही ख़तम हो जाता है। दुआओं के ज़रिए इंसान की क़ूव्वते इरादी यानि इच्छा शक्ति भी मज़बूत होती है। दुआ इसी उम्मीद के साथ की जाती है कि क़ादिरे मुत्लक़ अल्लाह उसकी मदद करेगा। 

दुआ भी एक दवा है
हमारा रोज़ का तजुर्बा है कि कड़वे बोल गहरे घाव कर जाते हैं जबकि मीठे बोल मरहम का काम करते हैं। दुआ भी एक दवा है और दवा भी ज़बाने हाल से की जाने वाली एक दुआ है। आप दुआ को देखिए। आप उसमें मीठे और उम्दा बोल भरे हुए पाएंगे। दवा को भी उसी रब ने पैदा ने किया है। जिसमें उसके इल्म और उसकी क़ुदरत का निशान ज़ाहिर हुआ है। इन दवाओं के ज़रिए भी नर्वस सिस्टम को ताक़तवर बनाया जा सकता है। आपको सुनकर शायद ताज्जुब हो कि कई बार ऐसा भी होता है कि दवा दी जाती है तो जिन्न भाग जाता है। दरअसल होता यह है कि नर्वस सिस्टम ताक़तवर होते ही इंसान का माइंड जिन्नात की गिरफ़्त से आज़ाद हो जाता है।

दवाओं से भी जिन्न और जादू का इलाज मुमकिन है
यह एक पेचीदा और लम्बा सब्जेक्ट है। यहां सिर्फ़ यह बताना मतलूब है कि ऐसे मरीज़ों को मुनासिब दवा दी जाए तो उससे भी उनकी तकलीफ़ दूर हो जाती है। आम तौर पर एलोपैथी में ऐसे मरीज़ों को नींद की दवा दी जाती है। दिमाग़ को राहत मिलने से उसमें ताक़त और ताज़गी आ जाती है और वह अदृश्य सूक्ष्म शरीरी शक्तियों की ट्राँस से आज़ाद हो जाता है।
जब मन बीमार और कमज़ोर हो जाता है। तभी सोते-जागते हुए भुतहा अनुभव होते हैं। मानसिक शक्ति को खाने पीने की चीज़ों के ज़रिये भी बढ़ाया जा सकता है। एक हदीस में आता है कि

‘मैंने सा‘द (रज़ि) से सुना है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया करते थे कि जिसने सुबह उठते ही सात अज्वह खजूरें खा लीं। उस दिन उसे जादू और ज़हर भी नुक्सान न दे सकेंगे।‘
(बुख़ारी, मुस्लिम, अबू-दाऊद) 

कई और चीज़ें भी मन की कमज़ोरी को दूर करती हैं। आयुर्वेद में ऐसे मामलों में अपतन्त्रकारी बटी (हिस्टीरियाहर बटी), ब्राह्मी बटी (बुद्धिवर्धक), माँस्यादि क्वाथ और सारस्वतारिष्ट जैसी असरकारी दवाएं हैं। यूनानी पैथी में इसे ‘सौदावी मर्ज़‘ मानकर दवा दी जाती है। इस मर्ज़ को ‘काबूस‘ कहा जाता है। जिसमें मरीज़ जिन्न-परी देखता है और उनकी आवाज़ें सुनता है। मरीज़ के सिर में रोग़ने कददू की मालिश करने के साथ उसे कुछ माजून वग़ैरह दी जाती हैं। ये ज़ायक़े के ऐतबार से आयुर्वेदिक दवाओं से बेहतर होती हैं लेकिन जो मीठी दवाएं भी मन मारकर खाते हैं, उनके लिए होम्योपैथिक दवाएं बढ़िया हैं। इन्हें लाना, ले जाना और खाना सब कुछ आसान है। इनकी डोज़ भी कम है।

अल्लाह अपनी रहमत नाज़िल करे होम्योपैथी के खोजी डा. सी. एस. हैनीमैन रहमतुल्लाह अलैह पर, जो कि मुसलमान हो गए थे। उन्होंने वाक़ई हमें एक आसान तरीक़ा ए इलाज हमें है, जो किफ़ायती भी है। अरबपति सेठ से लेकर बीपीएल कार्ड धारक तक होम्योपैथी से इलाज करा सकता है और अगर उसमें थोड़ी समझ-बूझ भी है तो अपना इलाज वह ख़ुद ही कर सकता है। होम्योपैथी में बीमारी का कोई नाम नहीं है। यही वजह है कि इस पैथी में कैंसर, एड्स और पोलियो जैसी बीमारियों का इलाज भी मौजूद है। जिनका इलाज अभी एलोपैथ दरयाफ़्त ही कर रहे हैं। हमारे मोहतरम डा. सैफ़ुल्लाह अंसारी साहब के क्लिनिक से इन अमराज़ के अनगिनत पेशेन्ट ठीक हो चुके हैं। उन्हीं की वजह से हमें इस पैथी पर यक़ीन आया वर्ना हम यही समझते थे कि देखो समझदार हो कर भी लोग ऐसी गोलियां खा रहे हैं, जिनका लैब टेस्ट किया जाए तो उनमें दवा का नामो-निशान तक न निकले।
लैब टेस्ट में भले ही दवा साबित न हो लेकिन वह अपने सूक्ष्म रूप में मौजूद होती है और वह तेज़ी से असर भी करती है। जिन्न भी कहां दिखाई देते हैं लेकिन होते हैं और अपना असर डालते रहते हैं।

बारिश का पानी एक बहुत बड़ी दवा है
गंदी गाली के लक्षण पर हमने उसे हायोसायमस 30 देने के लिए अपनी किट देखी तो उसमें शीशी ख़ाली मिली। हमने उसमें आसमान से उतरा हुआ बारिश का पानी डाल दिया। हमने सुम्बुल को एक डोज़ दिलवाई और फिर उस एक ड्राम के कन्टेनर में फ़रहान से सादा पानी भरवा दिया कि इसे सुबह को पिला देना।
क़ुरआन (25, 48) में बारिश के पानी को ‘माअन तहूरा‘ यानि पवित्र करने वाला जल  और बरकत वाला पानी (क़ुरआन 50, 9) कहा गया है। नापाकी को दूर करने के लिए पाक चीज़ ही काम में लाई जाती है। आसमान से उतरा हुआ पानी, आम पानी के मुक़ाबले इंसान के बदन को सेल्युलर लेवल पर ज़्यादा अच्छे तरीक़े से पाक करता है क्योंकि इसमें नेचुरली हाइड्रोजन पर-ऑक्साइड (H2O2) होता है। जिसमें ऑक्सीजन का एक मॉलेक्यूल ज़्यादा होता है। इसके पीने से बदन में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ जाता है। इससे शरीर की कोशिकाएं ज़्यादा ऑक्सीजन लेती हैं और वे ज़्यादा अच्छे तरीक़े से गंदगी को बाहर निकाल पाती हैं। गंदगी जिस्म से बाहर निकल जाए तो बीमारी की असल वजह बाहर निकल जाती है। 
पानी कम पीने की वजह से लोगों के जिस्म में बरसों पुरानी गंदगी पड़ी सड़ रही है। लोग इसी वजह से बीमार हैं। अगर लोग अपने बदन को अन्दरूनी तौर पर पाक कर पाएं तो उनकी ऐसी बीमारियां भी दूर हो जाएंगी, जिन्हें लाइलाज माना जाता है। इस उसूल को काम में लाया गया तो नेचुरोपैथी वुजूद में आ गई।
पानी बीमारी के असल सबब गंदगी और टॉक्सिन्स को ही दूर कर देता है। इसी के साथ वह इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट अप करता है। इम्यून सिस्टम मज़बूत हो तो हरेक बीमारी के कीटाणुओं को वह ख़ुद ही ख़त्म देता है। दुनिया में एक इम्यूनोपैथी भी है। जो कि इसी उसूल पर काम करती है।

पुरानी डायरीः एक रूहानी सरमाया
उनके इसरार पर हमने उन्हें अल्लाह के नाम लिखकर दो तावीज़ भी दिए। यह दोनों तावीज़ हमने उस डायरी से नक़ल किए थे जो हमें मौलवी सिराज साहब ने अपने हाथ से लिखकर दी थी, बरसों पहले। उसमें उन्होंने वे तावीज़ और अमल लिख कर दिए थे। जो कि करने में आसान हैं और असर तेज़ करते हैं। मौलवी सिराज साहब आज एक मशहूर बंगाली आमिल हैं। उनकी कोठी पर दूर दूर से आए मरीज़ों की भारी भीड़ लगी रहती है। हम जिन दिनों सहारनपुर के मशहूर रूहानी आमिल हाफ़िज़ जमील अहमद जमील सिकन्दरपुरी साहब रह. के पास अमलियात सीखने के लिए जाया करते थे तो वहीं पर हमारी उनसे मुलाक़ात हुई थी। उस समय वह उनके चीफ़ असिस्टेन्ट हुआ करते थे।

निगाहे मर्दे मोमिन से बदल जाती हैं तक़दीरें
बहरहाल दुआ और दवा के बाद सुम्बुल की हालत में काफ़ी सुधार हुआ। बस अब कभी कभार उसका शरीर बेअख्तियार हिलने लगता था। कभी कभी वह डर जाती थी। उसे अपने जिस्म में सुई चुभने जैसा अहसास भी होता था। अब हमें होम्योपैथिक मेडिसिन्स ‘इग्नेशिया‘ और ‘एपिस मेलिफ़िका‘ में से किसी एक का चुनाव करना था। हमने डा. फख़रे आलम हाशमी, मुरादाबाद से मोबाईल पर सलाह मांगी। डा. फ़ख़रे आलम एक ज़बर्दस्त होम्योपैथ हैं और सैयद भी। जिस बीमारी का इलाज कहीं न हो, उसका इलाज इन्शा अल्लाह उनके पास मिलेगा। जब वह अलीगढ़ से इलेक्ट्रोनिक्स एंड टेली कम्यूनिकेशन इन्जीनियरिंग कर रहे थे। तब वह डा. अहसानुल्लाह ख़ाँ, धौर्रा से मिले। जो होम्योपैथी में एक बड़ा नाम हैं और केमिकल इन्जीनियरिंग में एम. टेक हैं। सैयद साहब ख़ान साहब की सोहबत में आए तो उनका रूझान होम्योपैथी की तरफ़ हो गया। डा. फ़ख़रे आलम अलीगढ़ से डिग्री इन्जीनियरिंग की लेकर लौटे लेकिन आज वह प्रैक्टिस होम्योपैथी की कर रहे हैं। बनने क्या गए थे और क्या बनकर लौटे !
उनकी उम्र अभी 30 साल भी नहीं है। उन्होंने सुम्बुल को इग्नेशिया 30 की 3 डोज़ 10-10 मिनट के फ़र्क़ से देने के लिए कहा। हमने ऐसा ही किया। 
फ़रहान ने पूछा कि अब यह दवा कब देनी है ? 
हमने कहा कि अब नहीं देनी है। बस यही काफ़ी है।

हाव भाव से जानिए मन का हाल
एक दिन बाद हम अपने बेटे के साथ पार्क की तरफ़ से आ रहे थे। हमने फ़रहान को मन्दिर के सामने वाले खड़न्जे पर जाते हुए देखा। हमने एक उचटती हुई नज़र डालने के बाद नज़रें झुका कर अपने बेटे से कहा कि बेटा देख रहे हो, फ़रहान की चाल में कैसी बेपरवाही है। वह हमारी तरफ़ ख़ास मुतवज्जह नहीं हुआ है।
बेटे ने कहा कि जी हां, देख रहा हूं।
हमने कहा कि इसका मतलब यह है कि इसे हमारी ज़रूरत नहीं है यानि इसकी बहन की तबियत ठीक है।
हम अपने बेटे को लोगों के हाव-भाव से उनके मन में चल रही हलचल को पढ़ना सिखाते रहते हैं। पहले इसे क़ियाफ़ा-शनासी कहा जाता था। आजकल इस आर्ट का नाम मेन्टलिज़्म है। कुछ लोग इसे बॉडी लेंग्वेज भी कहते हैं।
फ़रहान उत्तर से दक्षिण की तरफ़ जा रहा था जबकि हम पूरब से पश्चिम की तरफ़। एक जगह आकर हम दोनों पास पास आ गए। उसने सलाम किया। हम कुछ लम्हे इन्तेज़ार करते रहे कि वह सुम्बुल की ख़ैरियत के बारे में ख़ुद बताए। उसने नहीं बताया। तब हमने ही उसकी ख़ैरियत दरयाफ़्त की। 
घर आकर हमारे बेटे ने हमें बताया कि मैं तो आपके बताने से पहले ही समझ गया कि फ़रहान की बहन की तबियत ठीक है।
हमने कहा कि आपने कैसे जाना बेटे ?
उन्होंने कहा कि चलने से पहले वह ज़हूर धोबी के बच्चों के साथ हंसी ठिठोली कर रहे थे। आदमी घर से बाहर हंसी-मज़ाक़ तभी कर पाता है जबकि वह अपने घर की तरफ़ मुतमइन हो।
बेटे का तर्क सुनकर हमने जान लिया कि माशा अल्लाह वह अच्छी रफ़्तार से तरक्क़ी कर रहे हैं।

आसान टोटके समस्या का समाधान नहीं होते
आज 31 अगस्त 2013 को सिद्दीक़ भाई एक जगह अचानक मिल गए। उन्होंने मुस्कुरा कर कहा कि सुम्बुल अभी भी कभी कभार डर जाती है, उस पर असर अभी भी है।
हमने कहा कि आप नमाज़ शुरू कर दीजिए, असर चला जाएगा। जो काम हमारा था। वह हमने कर दिया है। जो आपके ज़िम्मे है, उसे आपको ही करना होगा। आप अपना काम नहीं करेंगे तो इलाज कराते हुए आपकी उम्र गुज़र जाएगी लेकिन असर नहीं जाएगा। वह नित नई बीमारियों और मुसीबतों का रूप धर कर आता रहेगा और आपके परिवार को सताता रहेगा।
उन्होंने कहा कि कुछ कील वग़ैरह पढ़ कर दे देते।
हमने दिल में कुढ़ते हुए उनके ख़याल की दाद दी। वाह रे सहूलतपसन्दी! मुसीबत सिर पर पड़ी हुई है और सैयद साहब फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने के लिए हामी नहीं भर रहे हैं। हमने कहा कि इस मामले में कोई कील-वील का अमल नहीं चलेगा। फ़क़त नमाज़, क़ुरआन और दुआ का अमल चलेगा।

कम हैं जो उस रब की बन्दगी का हक़ अदा करते हैं
सिद्दीक़ साहब अभी भी पहले की तरह नमाज़ से दूर हैं लेकिन हमने एक दिन फ़रहान को मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए देखा। नसीहत ठीक मौक़े पर की गई थी, लिहाज़ा वह रंग लाई। ज़्यादातर लोगों के लिए यह बात कोई अहमियत नहीं रखती कि अल्लाह ने हमें क्यों पैदा किया है और वह हमसे क्या चाहता है ?
यह फ़िक्र दिल में न हो तो आदमी मस्जिद से भी बिना हिदायत पाए ही लौटता है। यही वजह है कि नमाज़ पढ़ने वाले भी नाफ़रमानियां करते रहते हैं। जब वे नमाज़ पढ़ रहे होते हैं, तब भी उन्हें ख़ुदा की चाहत के बजाय अपनी चाहत से ही वास्ता होता है। उनका काम अटक गया तो वे ख़ुदा को पुकारने लगे। जब उनकी मुसीबत टल जाएगी तो वे फिर पहले जैसे हो जाएंगे। जब इंसान का शऊर जागता है तभी यह कैफ़ियत बदलती है। मौत की याद और ख़ुदा के सामने हाज़िरी का अहसास इंसान में यही शऊर जगाते हैं। नमाज़ और हज के ज़रिये इसी याद और अहसास को बार बार ताज़ा किया जाता है। 
हम क्या चाहते हैं ?, इसकी कोई वैल्यू नहीं है। हमारा पैदा करने वाला हमसे क्या चाहता है ?, असल अहमियत इसकी है। यह दुनिया उस रब की है। लिहाज़ा यहां उसी की योजना लागू है और उसी की मंशा पूरी हो रही है। हमारी चाहत उसकी मंशा के मुताबिक़ है तो हम सही हैं और अगर हमारी चाहत उसकी मंशा के खि़लाफ़ तो हम अपनी चाहतें पूरी करने में बर्बाद हो जाएंगे। 

‘रब‘ के बिना ‘सब‘ बेकार है
दुनिया यही ग़लती करके बर्बाद हो रही है। कोई मर रहा है और कोई मार रहा है। जो ज़िन्दा हैं, उनकी अक्सरियत म्यूज़िक, नशे और एडवेन्चर के ज़रिये आनंद-प्राप्ति के जज़्बे को पूरा करने की कोशिश करती है लेकिन फिर उनके भी अन्दर शून्य बदस्तूर बाक़ी रहता है। जो उन्हें बताता रहता है कि हक़ीक़त में जो चीज़ मतलूब (वांछित) है, वह अभी तक हासिल नहीं हुई है। वह मतलूब चीज़ हक़ीक़त में कोई चीज़ नहीं है बल्कि सारी चीज़ों का ख़ालिक़ (क्रिएटर) और मालिक ख़ुद है। वह एक है। जब तक ‘एक‘ न मिले तब तक शून्य तो बना ही रहता है। इसे मैथ के ज़रिए भी समझा जा सकता है। ‘एक‘ आ जाता है तो शून्य बच नहीं पाता। वह बच ही नहीं सकता।
रहमत वाला वो रब हमसे क्या चाहता है ?
क़ुरआन में उसने यही बताया है लेकिन उसे पढ़ने वाले भी कम हैं और उसे समझ़ने वाले उससे भी कम हैं। क़ुरआन पर अमल करने वाले बहुत ही कम हैं।

सुधार से ही होगा उद्धार
लोग मुसीबतों से परेशान हैं। वे रब की रहमत को पुकार रहे हैं लेकिन ख़ुद को बदलने के लिए तैयार नहीं है। इसी बात का फ़ायदा ढोंगी बाबा उठाते हैं। वे किसी को सकारात्मक सोच अपनाने और अपना फ़र्ज़ अदा करने के लिए नहीं कहते। वे तक़दीर बदलने के लिए आसान टोटके बताते हैं क्योंकि पब्लिक ऐसा ही चाहती है। ऐसे में वे किसी का माल और किसी की आबरू लूट लेते हैं। ये सरकश इंसान हैं। शैतान सिर्फ़ जिन्नों में ही नहीं होते बल्कि इंसानों में भी होते हैं। शैतान जिन्नों से बचना आसान है लेकिन शैतान इंसानों बचना बहुत मुश्किल है। आम बुद्धि के लोग इन्हें अपना गुरू बनाए बैठे हैं।
हरेक की पहचान उसके अमल से होती है। इंसान को उसके अमल के आईने देखो तो इंसान और शैतान का फ़र्क़ साफ़ नज़र आएगा।

धर्म का पालन करते हुए भी पाखंडी धंधेबाज़ों का उन्मूलन संभव है
सुम्बुल के साथ पेश आने वाले वाक़ये को काफ़ी तफ़्सील से लिखा गया है। इसकी वजह यह है कि यह एक आम समस्या है जो कि हर शहर में और हरेक धर्म-मत के मानने वालों को पेश आती है। जगह जगह ऐसे तंात्रिकों और रूहानी आमिलों की दुकानें खुली हुई हैं जो ख़ुद को काले इल्म का माहिर बताते हैं और जिन्न और जादू का इलाज करने का दावा करते हैं। वे आम जनता को साधना और सिद्धि की ऐसी कहानियां सुनाते हैं। जिन्हें सुनकर आम लोग यह समझते हैं कि इतनी कठिन साधना तो वे कर नहीं सकते। लिहाज़ा अपना कष्ट हम ख़ुद दूर नहीं कर सकते। यही बाबा लोग हमारे कष्ट दूर कर सकते हैं। ये मुफ़्तख़ोर ढकोसलेबाज़ समाज का कष्ट दूर नहीं करते बल्कि उसका कष्ट बढ़ा रहे हैं। जो आदमी मालिक से दुआ करने में सक्षम है, वह अपना कष्ट स्वयं दूर करने में सक्षम है। अपनी दुआ कम लगे तो अपने मां-बाप से अपने लिए दुआ करवाए। उनकी सेवा करे। फिर भी कष्ट दूर न हो तो किसी अनाथ, विधवा, बीमार या किसी ग़रीब की मदद कर दे। उसकी आत्मा से जो दुआ निकलेगी। वह आपके कष्ट दूर होने का बहुत मज़बूत वसीला बनेगी।
तर्कशील बुद्धिजीवी ईश्वर, आत्मा और जिन्न आदि के वुजूद को नकारते हैं लेकिन भारत का हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई उनकी बात को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत की प्रकृति में ही अध्यात्म रचा बसा है। नास्तिक दार्शनिकों ने हज़ारों साल कोशिश की है लेकिन वे भारत की प्रकृति को नहीं बदल सके। अब तक नहीं बदली है तो आगे भी नहीं बदलेगी और बदलने की ज़रूरत भी नहीं है।
असल कोशिश यह करनी है कि धंधेबाज़ धर्म और अध्यात्म को व्यापार और ठगी का ज़रिया न बनाएं। परंपरा और अनुष्ठान के नाम पर किसी की जान माल बर्बाद न होने पाए। कष्ट से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए लोगों को ज़िक्र, दुआ और ध्यान के आसान तरीक़े की शिक्षा दी जाए। जिसे वे बिना किसी पीर-पुरोहित के ख़ुद अन्जाम दे सकें।

दुआ, सबसे आसान और सबसे बड़ा अमल है
हाज़िरात के जिस तरीक़े का हमने ज़िक्र किया है। उसे हरेक आदमी ख़ुद कर सकता है। इसे मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू भाई बहन भी कर सकते हैं। जो लोग हाज़िरात के अमल को समझ ही न पाएं। वे भी इन दुआओं से लाभ उठा सकते हैं। ऐसे लोग केवल क़ुरआन की सूरतों को पढ़कर उस पैदा करने वाले रब से सच्चे दिल से लौ लगाएं और सिर्फ़ उसी से कष्ट दूर होने की प्रार्थना कर लें। किसी मौअक्कल को कोई हुक्म देने की ज़रूरत नहीं है। वह मालिक इससे भी ज़्यादा आपके लिए ख़ुद ही कर देगा।
जो लोग क़ुरआन की सूरतें नहीं पढ़ सकते। वे केवल पक्के यक़ीन के साथ ‘बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम‘ का जाप करें। उन्हें वे सब लाभ मिलेंगे जो कि क़ुरआन की किसी दूसरी आयत से मिलते हैं। शुरू और बाद में चंद बार दुरूद शरीफ़ ज़रूर पढ़ें- ‘अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिंव व अला आलिहि वसल्लम‘  
आप किसी भी दुआ को अपने वक़्त के हिसाब से कितना भी कम या कितना भी ज़्यादा पढ़ सकते हैं। जितना भी पढ़ें, दिल को हाज़िर करके पढ़ें।

सिर्फ़ दुआ काफ़ी है
हाज़िरात की ज़रूरत ही नहीं है। हम ख़ुद हरेक मरीज़ पर हाज़िरात नहीं करते। इसमें वक़्त बहुत लगता है और मरीज़ पर ज़ोर भी पड़ता है। हम हाज़िरात बहुत कम करते हैं। अक्सर हम परेशान लोगों के लिए  सिर्फ़ दुआ करते हैं।
ईद के बाद 11 अगस्त 2013 को इतवार के रोज़ हम ठाकुर श्री वीर सिंह जी की तबियत पूछने के लिए गए तो वहां हमने सिर्फ़ दुआ की और अल्लाह का शुक्र है कि उन्होंने फ़ौरन फ़ायदा महसूस किया।

महंगा इलाज सबके बस की बात नहीं है
श्री वीर सिंह जी का बेटा शैलेन्द्र 8वीं क्लास में हमारे बेटे के साथ पढ़ता है। वह ईद मिलने के लिए हमारे घर आया। हमने महसूस किया कि उसके अन्दर से बच्चों वाली शोख़ी ग़ायब है। उससे हमने कुछ खाने के लिए कहा तो भी उसकी तरफ़ से गंभीर अन्दाज़ जवाब मिला। ऐसी गंभीरता तो तब आती है जब इंसान ज़माने की सख़्तियाँ झेल रहा होता है। हमने उससे बात की तो शैलेन्द्र ने बताया कि उसके पापा एक साल से बीमार हैं। उनका लिवर फ़ेल हो चुका है। डॉक्टर ने उनके लिवर का सैंपल अमेरिका भेजा। अमेरिका से रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर ने कहा है कि पापा का लिवर ट्राँसप्लाँट किया जाएगा। इसमें 10 करोड़ रूपये का ख़र्च आएगा। 
अब हमारी समझ में सारा माजरा आ गया। शैलेन्द्र के पापा सड़क बनाने के सरकारी ठेकेदार हैं लेकिन 10 करोड़ ख़र्च करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। हालात जिस तरफ़ बढ़ रहे थे। वह शैलेन्द्र के लिए बेहतर नहीं थे। हमने अपनी मौत को याद किया। हमारी मौत के बाद हमारे छोटे छोटे बच्चे किन परेशानियों का सामना करेंगे। लम्हे भर में ही पूरी तस्वीर हमारे सामने आ गई। हमने शैलेन्द्र को तसल्ली दी और कहा कि बिना किसी ऑप्रेशन और ख़र्च के ही आपके पापा ठीक हो जाएंगे। हमने उसे अल्लाह के 2 नाम ‘या मुहयी या मुईद‘ लिखकर दिए और कहा कि आप इन नामों के साथ उस रब से दुआ करना।
अगले दिन शैलेन्द्र अपनी बड़ी बहन के साथ हमें बुलाने के लिए आया लेकिन उस दिन हम सैयद जावेद अहमद एडवोकेट साहब से मिलने के लिए गए हुए थे। हम इतवार के रोज़ दरोग़ा जी अकबर से ईद मिलने के लिए सुशीला विहार गए। उनके पास ही ठाकुर श्री वीर सिंह जी की कोठी है। हम उनकी ख़ैरियत दरयाफ़्त करने लिए भी चले गए। हमारे साथ हमारी बेटी भी थीं।

ठाकुर के लिए पठान की दुआ
शैलेन्द्र के माता पिता ने हमारा इस्तक़बाल किया। वीर सिंह जी ने बताया कि उन्होंने ज़िन्दगी में शराब को चखा तक नहीं है। उन्हें न्यूमानिया हुआ था। उसी की वजह से उनका लिवर ख़राब हुआ है। लिवर ख़राब होने के बाद अब उन्हें डायबिटीज़ भी हो गई है। उस वक्त उनका पेट पूरी तरह तना हुआ था। 
हमने उनसे कहा कि अगर आप चाहें तो हम आपकी सेहत के लिए दुआ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम आपको इसीलिए तो बुलाना चाहते थे।
हमने अल्लाह से दुआ की। हम बा-आवाज़े बुलन्द 20 मिनट से ज़्यादा दुआ करते रहे। दुआ के बाद वीर सिंह जी ने बताया कि उनका पेट कुछ हल्का महसूस हो रहा है। हमने उन्हें वैद्य जी नरेश गिरी से आयुर्वेदिक ट्रीटमेन्ट लेने की सलाह दी। वह गिरी जी से तो मिलने नहीं गए लेकिन वह अल्लाह के दोनों नाम ‘या मुहयी या मुईद‘ पढ़कर दुआ करते रहे। 
वीर सिंह जी का कोई फ़ोन नहीं आया तो हमने अपने बेटे से पूछा कि शैलेन्द्र के पापा की तबियत अब कैसी है ?
उन्होंने कहा कि शैलेन्द्र उनके बारे में कुछ ज़िक्र नहीं करता। हमने कहा कि शैलेन्द्र की कैफ़ियत बताओ। उसी से अन्दाज़ा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि वह तो हंसी-मज़ाक़ और शरारतें करने लगा है। हमने कहा कि बच्चा अपनी नेचर पर लौट आया है। इसका मतलब है कि उसके पापा की तबियत ठीक हो रही है।
अगले दिन हमारे बेटे ने स्कूल में शैलेन्द्र से उसके पापा तबियत पूछी तो उसने बताया कि दुआ के दो-चार दिन बाद ही मेरे पापा के मुंह के रास्ते से 2-3 लीटर पानी निकला और पेट की तकलीफ़ दूर हो गई।
अगर वह बताए गए तरीक़े से दुआ करते रहे तो इन्शा अल्लाह वह पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।

अभी हम इस लेख को आखि़री शक्ल देकर नाश्ता कर रहे थे कि पंडित राजबल शर्मा जी की वाइफ़ तशरीफ़ ले आईं। पंडित राजबल शर्मा पड़ोस में रहते हैं और पुलिस विभाग में काम करते हैं।
नौ माह पहले उनके घर एक पोता पैदा हुआ थां। वह स्पाईना बायफ़िडा नाम की बीमारी का मरीज़ था। तब उनके बुलाने पर हम उसे देखने के लिए गए थे और उन्हें दुआ करने और चिड़िया को दाना डालने की बात बताई थी। उस बच्चे का नाम हमने नूह रखा था। कुछ दिन बाद ही बच्चे की हालत में कुछ सुधार होने लगा। एक दिन हमारे बच्चों ने बताया कि उन्होंने बच्चे का नाम कुछ और रख दिय है। हम तभी खटक गए थे।
आज दिनांक 2 सितम्बर को वह परेशानी की हालत में फिर हमारे पास आई थीं। मग में थोड़ा सा दूध अभी बाक़ी था। जिसे हम नमाज़ वाली चौकी पर बैठकर पी रहे थे। हमने उन्हें कुर्सी पर बैठने के लिए कहा और नाश्ते के लिए पूछा।
उन्होंने इनकार कर दिया और उन्होंने अपनी परेशानी बयान की। उनकी परेशानी को बयान किया जाए तो सुम्बुल के वाक़ये से ज़्यादा बड़ा लिखना। लिहाज़ा उसे किसी और वक़्त के लिए छोड़ दिया जाता है।
तब तक आप शहद की रॉयल जैली के बारे में पढ़ें। जो कि एक बेहतरीन दवा है। जिस लारवा को रॉयल जैली खिलाई जाती है। वह रानी मक्खी बनकर बड़ा होता है और ज़िन्दगी भर अपने समाज की अगुवाई करता है और उन पर राज करता है।
क़ुरआन में मधुमक्खी का ज़िक्र बड़ी तफ़्सील के साथ आया है और उसके पेट से निकले हुए शहद की तारीफ़ करते हुए उस मालिक ने कहा है कि उसमें शिफ़ा है।