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Friday, July 3, 2015

Allahpathy क़ुरआन से इलाज करने के बदले माल लेने के बारे में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म और उनके सहाबा रजि़. का तरीक़ा



इमाम इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाहि अलैह लिखते हैं-
इमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैह और इमाम मुस्लिम रहमतुल्लाहि अलैह ने सहीहैन में हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत की है। उन्होंने बयान कियाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा की एक जमात एक सफ़र में निकल पड़ी। सफ़र करते करते अरब के एक क़बीले में उतरे और उनसे मेज़बानी क़ुबूल करने की दरख़्वास्त की। उन्होंने मेज़बानी क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया। इतने में उनके सरदार को डंक लगा। उन्होंने हर मुमकिन तदबीर कर डाली मगर कोई तदबीर कारगर साबित न हुई। उस क़बीले के बाज़ लोगों ने कहा कि यह क़ाफि़ला जो तुम्हारे यहां आया है उनके पास चलो। शायद उनमें से किसी के पास कोई तदबीर हो।
चुनांचे वे सहाबा ए रसूल स. के पास आए और उनसे कहा-‘ऐ क़ाफि़ले के लोगो! हमारे सरदार को डंक लग गया और हर मुमकिन तदबीर हमने कर डाली मगर कुछ फ़ायदा न हुआ। क्या तुम में से किसी के पास इसका इलाज है?
उनमें से बाज़ ने कहा कि हाँ, अल्लाह की क़सम मैं झाड़ फूंक करता हूँ, मगर ज़रा सोचो कि हमने तुमसे मेहमानदारी करने की दरख़्वास्त की तो तुम लोगों ने हमारी इस दरख़्वास्त को ठुकरा दिया और हमारी मेज़बानी न की। मैं दम उस पर उसी वक़्त कर सकता हूँ, जब तुम उस पर कुछ उजरत मुक़र्रर करोगे।
चुनाँचे भेड़ों की एक तादाद पर मामला तय हो गया। उन्होंने उस पर ‘अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ पढ़ते हुए दम करना शुरू किया। उसका असर यह हुआ कि वह ऐसा चंगा हो गया गोया कि उसे किसी बन्धन से रिहाई मिली हो और वह चलने फिरने लगा। उसे कोई तकलीफ़ न थी। फिर उसने कहा कि इन लोगों को उनकी तयशुदा पूरी पूरी उजरत दे दो। चुनाँचे उन्होंने उजरत दे दी।
उसमें बाज़ सहाबा ने कहा कि आपस में इसे बाँट लो। इस पर दम करने वाले शख़्स ने कहा कि जब तक हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास न पहुँच जाएं, उस वक़्त तक कुछ न करो और हम आपके हुक्म के मालूम हो जाने तक उससे तवक़्क़ुफ़ करेंगे। चुनाँचे सब लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और उन्होंने पूरा वाक़या बयान किया।
यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुमने ठीक ही किया। अब इसे आपस में बाँट लो और इसमें मेरा भी एक हिस्सा लगाना।’
-तिब्बे नबवी पेज 218 व 219 उर्दू तर्जुमाः हकीम अज़ीज़ुर्रहमान आज़मी
उर्दू से हिन्दी अनुवादः डा. अनवर जमाल यूसुफ़ ज़ई